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लोकायुक्त को भी देनी होगी RTI के तहत जानकारी: MP STATE INFORMATION COMMISSION

भोपाल। मप्र राज्य सूचना आयोग ने लोकायुक्त संगठन की विशेष पुलिस स्थापना की इस दलील को खारिज कर दिया है कि राज्य शासन द्वारा उसे सूचना का अधिकार अधिनियम से मुक्त रखा गया है। अतः वह सूचना के अधिकार के तहत चाही गई कोई जानकारी देने को बाध्य नहीं है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि अधिनियम से छूट के बावजूद भ्रष्टाचार व मानवाधिकार के उल्लंघन से संबंधित जानकारी देने से इंकार नहीं किया जा सकता है। आयोग के आदेश पर जानकारी देनी होगी। 

राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने इस मामले में दायर केदारीलाल वैश्य, ग्वालियर की अपील स्वीकार करते हुए और विशेष पुलिस स्थापना की दलीलें नामंजूर करते हुए उसे आदेश दिया है कि अपीलार्थी को चाही गई जानकारी 15 दिन में निःशुल्क उपलब्ध कराएं और यथा शीघ्र आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत करें। अन्यथा स्थिति में धारा 19 एवं 20 के तहत दंडात्मक कार्यवाही करने पर विचार किया जाएगा। 

लोकायुक्त दलील अमान्य
सूचना आयुक्त ने इस मामले में लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी के निर्णय को रद्द करते हुए अपने आदेश में कहा कि शासन द्वारा जारी अधिसूचना में विशेष पुलिस स्थापना को अधिनियम के प्रावधानों से छूट देने के जो कारण उल्लेखित किए हैं, वे इस प्रकरण में कतई लागू नहीं होते हैं। अपीलार्थी ने स्वयं की शिकायत पर की गई कार्यवाही की जानकारी चाही है जिससे न शिकायतकर्ता की पहचान उजागर होने का प्रश्न पैदा होता है, न शिकायतकर्ता के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होने की कोई संभावना है और न ही अपराधियों के पकड़े जाने या अन्वेषण या अभियोजन की प्रक्रिया में अड़चन आने की कोई आशंका पैदा होती है। 

लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी ने अधिसूचना में उल्लेखित विवरण के विपरीत गलत आशय निकालकर जानकारी देने से इंकार किया है जो विधि सम्मत व न्यायसंगत नहीं है। हर षिकायतकर्ता को उसके द्वारा लोक प्राधिकारी को की गई षिकायत पर की गई कार्यवाही की जानकारी प्राप्त करने का वैधानिक अधिकार है। मानवाधिकार व प्राकृतिक न्याय के सिध्दांत की दृष्टि से भी अपीलार्थी वांछित जानकारी पाने का हकदार है। 

गंभीर टिप्पणीः  
सूचना आयुक्त आत्मदीप ने फैसले में टिप्पणी की है कि यह यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कभी-कभी विधायी/स्वायत्त संवैधानिक संस्थाएं, जिनसे कानून के पालन की समाज को कहीं अधिक अपेक्षा होती है, जब वह स्वयं भ्रष्टाचार के विरूध्द पारदर्शिता, जबावदेही व खुलापन निर्धारित करने वाले सूचना के अधिकार जैसे क्रांतिकारी कानून के दायरे में आते हैं, तब ऐसे कानून का पालन या उसकी भावना का सम्मान करने के बजाए किसी तरह उससे बचने का प्रयास करने लगते हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम की जिस धारा 24 (4) द्वारा प्रदत्त शक्तियों को उपयोग में लाते हुए राज्य शासन द्वारा विशेष पुलिस स्थापना को उक्त अधिनियम के उपबंधों से मुक्त किया गया है, उसी धारा में यह भी प्रावधानित है कि भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के अतिक्रमण के उल्लंघन के आक्षेेपों से संबंधित सूचना धारा 24 (4) के अधीन अपवर्जित नहीं की जाएगी । यह विधि सुस्पष्ट है जो भ्रष्टाचार से संबंधित सूचना को अधिनियम से छूट देने से साफ तौर पर वर्जित करती है । अतः वांछित जानकारी लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी द्वारा उल्लेखित परिधि में नहीं आती है। 

लोक सूचना अधिकारी एवं अपीलीय अधिकारी द्वारा अपने विनिष्चय में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि अपीलार्थी को उसी की षिकायत पर की गई कार्यवाही की जानकारी देने से अपराधियों के अन्वेषण/पकड़े जाने/अभियोजन की प्रक्रिया में क्या अथवा कैसे अड़चन पड़ेगी । स्पष्टतः उनका पक्ष कथन अस्पष्ट है। अतः अन्वेषण व अभियोजन के कार्य में किसी अड़चन का प्रष्न नहीं है। 

यह है मामला
अपीलार्थी ने विशेष पुलिस स्थापना, ग्वालियर के उपनिरीक्षक रामलखन सिंह के विरुद्ध पद का दुरूपयोग कर अनुपातहीन संपत्ति अर्जित करने के बारे में स्वयं द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत पर की गई कार्यवाही संबंधी जानकारी चाही थी। लोक सूचना अधिकारी/उप पुलिस अधीक्षक ने अपीलार्थी को यह सूचना देकर जानकारी देने से इंकार कर दिया कि मप्र शासन द्वारा विशेष पुलिस स्थापना को आरटीआई अधिनियम से छूट प्रदान की गई। अपीलीय अधिकारी/पुलिस अधीक्षक ने भी अपीलार्थी को सुने बिना, लोक सूचना अधिकारी के निर्णय से सहमत होते हुए, अपीलार्थी की प्रथम अपील इस आधार पर खारिज कर दी कि चाही गई जानकारी गोपनीय जांच/अन्वेषण की प्रक्रिया के अंश हैं, जिनके प्रकटन से विशेष पुलिस स्थापना/लोकायुक्त कार्यालय की प्रक्रिया व स्त्रोत के गोपनीय स्वरूप, कार्य करने के प्रभावी तरीके एवं सूचना स्त्रोत में सहयोग करने वालों की पहचान सार्वजनिक होती है जो सुरक्षा व गोपनीयता की दृष्टि से इस संगठन को क्षतिकारक है। 

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