श्योपुर/मध्य प्रदेश। जहां एक ओर मंत्री और तमाम बड़े प्रशासनिक अधिकारी लक्झरी बंगलों के लिए लड़ते दिखाई देते हैं वहीं एक जज ऐसा भी है जिसने लावारिस वृद्धों को सुकून भरा जीवन देने के लिए अपना बंगला खाली कर दिया। इतना ही नहीं जज ने ऐसे इंतजाम भी किए कि वृद्धों को कोई परेशानी ना हो और वो ठप्पे से रह सकें।
शहर के गांधीनगर में किराए के एक छोटे से भवन में वृद्धाश्रम संचालित होता था। पिछले माह कलेक्टर पन्नालाल सोलंकी एवं अपर सत्र न्यायाधीश शशिकांत चौबे एक कार्यक्रम में भाग लेने वृद्धाश्रम गए थे। तभी बारिश में भवन की छत से टपकते पानी के बीच रह रहे बुजुर्गों की परेशानी देखकर अपर सत्र न्यायाधीश शशिकांत चौबे ने अपना बंगला खाली करके वृद्धाश्रम को देने की पेशकश कलेक्टर के समक्ष रख दी। कलेक्टर पन्नालाल सोलंकी ने भी जज श्री चौबे द्वारा खाली किया गया बंगला वृद्धाश्रम को आवंटित कर दिया गया है।
वृद्धाश्रम के लिए आलीशान बंगला मिलने से 22 बुजुर्गों की नीरस जिंदगी में सुख-सुविधाओं की बहार आ गई है। इस बंगले में पांच कमरों में पुरुष और महिलाओं के रहने की अलग-अलग व्यवस्था की गई है। पहले वृद्धाश्रम में एक ही कमरे में ही सबको साथ रहना पड़ता था, अब एक कमरे में सिर्फ पांच पलंग लगे हैं। हर कमरे में कूलर व पंखे है। बाथरूम में नहाने के लिए गर्म पानी चाहिए तो गीजर का इंतजाम है। यहां एक वाटर कूलर से उन्हें पीने के लिए ठंडा पानी मिलता है। इनवर्टर भी होने से 24 घंटे बिजली आती है। मनोरंजन के लिए हॉल मेंं एलईडी टेलीविजन लगा है।
सुहाने सपने जैसी लग रही है जिंदगी
हरियाणा निवासी किशोरीलाल राजपूत और उनकी पत्नी गंगादेवी बताती है कि बुढ़ापे में दो बेटों ने शादी के बाद अपने साथ रखने से मना कर दिया तो दो साल पहले गांव से निकल आए थे। श्योपुर में आकर मेहनत मजदूरी की, लेकिन जब हाथ पैर जवाब दे गए तो वृद्धाश्रम का सहारा लिया। यहां वृद्धाश्रम में रहकर जिंदगी किसी सुहाने सपने जैसी लग रही है। वद्धाश्रम में रह रहे एक अन्य दंपती रामबड़ौदा गांव के शंभूसिंह और विद्याबाई सेन ने कहा कि हमने दो बेटों को पढ़ाने -लिखाने के लिए मकान बेच दिया था। एक बेटा माधोपुर और दूसरा सुल्तानपुर में नौकरी करता है। बुढ़ापे में दोनों बेटों ने ठुकरा दिया तो वृद्धाश्रम में शरण ली है।
पहले यह कलेक्टर कोठी थी
शहर के पाली रोड पर पुराने कलेक्टर बंगले के नाम से जाने वाले बंगले का निर्माण कार्य सन् 1935 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुआ था। जिसमें अंग्रेज अफसर रहते थे। आजादी के बाद जब तक श्योपुर तहसील रहा , सभी एसडीएम इस बंगले मेें रहे। इसके बाद श्योपुर में अपर कलेक्टर की पोस्टिंग के बाद इस बंगले में कई एडीएम रहे। जबकि 1998 में श्योपुर के जिला बनने के बाद चार कलेक्टर इसी बंगले में रहे थे।