नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाने को तैयार नहीं हैं। मैरिटल रेप को लेकर कोर्ट में दिए हलफनामे में कहा गया है कि इससे पूरा परिवार सदमे और तनाव में आ जाएगा। गृह मंत्रालय की ओर से दिए गए हलफनामे में संसदीय स्थाई समिति की सिफारिश का भी हवाला दिया और कहा कि मैरिटल रेप को अपराध मानने की सिफारिश नहीं है।
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि आईपीसी के उस प्रावधान को खत्म किया जाए जिसमें कहा गया है कि 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ पति द्वारा जबरन संबंध रेप के दायरे में नहीं होगा। मैरिटल रेप के मामले में अगर पत्नी की उम्र 15 साल से ऊपर है तो कानूनी प्रावधान के मुताबिक रेप नहीं माना जाता।
हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में इस मामले में उक्त अपवाद को खत्म करने की गुहार लगाई गई है जिस पर हाई कोर्ट ने पहले ही केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा था।
इसी बीच हाई कोर्ट में एक अन्य ऐडवोकेट आरके कपूर ने याचिका दायर कर कहा गया था कि मैरिटल रेप के दायर में पति को नहीं लाया जाना चाहिए क्योंकि इससे कानून का दुरुपयोग हो सकता है। कपूर ने बताया कि अब मामले में केंद्र सरकार के जवाब के बाद अंतिम जिरह होगी और हाई कोर्ट ने सुनवाई के लिए 17 नवंबर की तारीख तय कर दी है।
गृह मंत्रालय की ओर से दिल्ली हाई कोर्ट में हलफानामा दायर कर कहा गया है कि रेप लॉ में जब बदलाव किया गया तब यह अपवाद रखा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से ऊपर है तो पति के खिलाफ पत्नी रेप का केस दर्ज नहीं करा सकती। केंद्र सरकार का कहना है कि बाल विवाह को खत्म करने के लिए कानून बनाया गया है लेकिन सामाजिक वास्तविकता के तहत 18 साल से कम उम्र की शादी को शून्य नहीं माना गया है।
निर्भया गैंग रेप की घटना के बाद रेप लॉ में बदलाव के लिए बनाई गई जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी की सिफारिश में भी मैरिटल रेप को अपवाद में रखने की बात कही गई है। संसदीय स्थाई समिति ने वर्मा कमिटी की सिफारिश और लॉ कमिशन की रिपोर्ट पर विचार किया और पाया कि अगर महिला अपने पति के से परेशान है तो वह अन्य कानूनी उपचार का सहारा ले सकती है।