नई दिल्ली। मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने के प्रावधान वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक को गुरुवार को राज्यसभा की मंजूरी मिल गयी। श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने प्रसूति प्रसुविधा (संशोधन) विधेयक 2016 पर हुई चर्चा के जवाब में कहा कि कामकाजी महिलाओं की आवश्यकताओं को देखते हुए इसमें यह प्रावधान किया गया है।
मातृत्व अवकाश की अवधी 26 सप्ताह हुई
उनके जवाब के बाद उच्च सदन ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया विधेयक में मातृत्व अवकाश की अधिकतम अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह किए जाने का प्रावधान किया गया है ताकि माताएं अपने बच्चों की बेहतर देखभाल कर सकें।
दो बच्चों के मामले में मिलेगा 26 सप्ताह का अवकाश
दो बच्चों के मामलों में यह सुविधा 26 सप्ताह की होगी। इसके बाद यह सुविधा 12 हफ्ते की होगी। साथ ही प्रसूति सुविधाएं किसी ‘‘अधिकृत माता’’ या ‘‘दत्तक माता’’ के लिए भी होंगी जो वे बालक के हस्तगत करने की तारीख से 12 सप्ताह की प्रसूति लाभ की हकदार होंगी।
50 से अधिक कर्मचारी वाले प्रतिष्ठानों में क्रेच अनिवार्य
विधेयक में किसी माता को घर से काम करने की सुविधा को सुगम बनाने पर भी जोर दिया गया है। 50 से अधिक कर्मचारी वाले प्रतिष्ठानों के लिए शिशु कक्ष (क्रेच) की व्यवस्था अनिवार्य होगी। माताओं को प्रति दिन चार बार शिशु कक्ष जाने जाने की अनुमति होगी। ऐसी व्यवस्था न करने वाले संगठनों के लिए दंड का प्रावधान भी किया गया है।
इसके अनुसार प्रत्येक प्रतिष्ठान हर महिला को उसकी आरंभिक नियुक्ति के समय कानून के तहत उपलब्ध सुविधाओं के बारे में लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप से जानकारी देगा।
18 लाख महिलाओं को होगा लाभ
इससे पूर्व दत्तात्रेय ने चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि प्रसूता मां और बच्चों को बेहतर जीवन प्रदान करना एक बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दा है तथा यह विधेयक इस दिशा में काफी मददगार साबित होगा। उन्होंने कहा कि विधेयक का उद्देश्य है कि कार्यबल और कार्मिक बल में महिलाओं की संख्या बढ़ाई जाए। संशोधनों से 18 लाख महिलाओं को लाभ होगा।
वेतन तो मिलेगा ही 3000 रुपए बोनस भी मिलेगा
विधेयक पर हुई चर्चा के दौरान कई दलों के सदस्यों ने इस विधेयक के दायरे में ‘‘किराये की कोख’’ की सुविधा देने वाली माताओं को भी लाने का सुझाव दिया। दत्तात्रेय ने कहा कि विधेयक में प्रसूति अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है। प्रसूति अवकाश के दौरान महिलाओं को वेतन भी मिलेगा और तीन हजार रूपये का मातृत्व बोनस भी दिया जाएगा। 26 सप्ताह के प्रसूति अवकाश की सुविधा दो बच्चों के मामले में ही लागू होगी और अन्य मामलों में यह सुविधा 12 सप्ताह की ही रहेगी।
मंत्री ने कहा कि 50 या अधिक कर्मचारी रखने वाले संस्थानों को शिशुओं के लिए क्रेच की सुविधा भी रखनी होगी जहां कोई भी मां चार बार अपने बच्चे से मिलने के लिए जा सकेगी। कोई भी नियोक्ता न तो कानून का उल्लंघन कर पाएगा और न ही इस वजह से किसी को निकाल पाएगा।
मातृत्व अवकाश मामले में भारत का दुनिया में तीसरा स्थान
मंत्री ने कहा कि मातृत्व अवकाश के बारे में भारत का दुनिया में तीसरा स्थान है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश दिया जाता है। मेक्सिको में 15, स्पेन में 16, फ्रांस में 16, ब्रिटेन में 20, नॉर्वे में 44 और कनाडा में 50 सप्ताह का मातृत्व अवकाश दिया जाता है।
पितृत्व अवकाश पर भी चर्चा
चर्चा में कई सदस्यों ने पितृत्व अवकाश का भी प्रावधान किए जाने का आग्रह किया ताकि माता और पिता मिलकर जिम्मेदारी उठाएं। विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस की रजनी पाटिल ने कहा कि विधेयक के प्रावधानों से 18 लाख महिलाओं को फायदा होगा। रजनी पाटिल ने कहा कि माता के साथ पिता की भी जिम्मेदारी बनती है। उन्होंने कहा कि पितृत्व अवकाश का भी प्रावधान होना चाहिए।
'शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी'
जदयू की कहकशां परवीन ने कहा कि शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के मकसद से यह विधेयक लाया गया है। उन्होंने सरकार के इस प्रयास को सराहनीय करार दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि सरकारी क्षेत्र में तो स्थिति ठीक है लेकिन काॅरपोरेट क्षेत्र में क्या स्थिति रहेगी।
'महिला कर्मचारी कठिन मेहनत के लिए होंगी प्रेरित'
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने के प्रावधान वाले नये विधेयक से नियोक्ताओं के लिये कुछ लागत बढ़ सकती है लेकिन इससे महिला कर्मचारी कठिन मेहनत करने के लिये प्रेरित होंगी और कार्यबल में उनकी भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
क्या है मातृत्व लाभ कानून, 1961
मातृत्व लाभ कानून, 1961 महिलाओं को मां बनने के दौरान उन्हें रोजगार की सुरक्षा देता है। इस दौरान उन्हें अनुपस्थित रहने के बावजूद पूरा वेतन मिलता है, ताकि वह अपने नवजात बच्चे की देखभाल ठीक से कर सके। यह कानून उन सभी प्रतिष्ठानों में लागू होता है जहां दस अथवा इससे अधिक कर्मचारी काम करते हैं। संगठित क्षेत्र में काम करने वाली करीब 18 लाख महिला कर्मचारियों को इसका लाभ मिलेगा।