दंतेवाड़ा। नक्सल प्रभावित बीजापुर मार्ग में स्थित गुमरगुंडा शिवालय में एक साथ 3 शिवलिंग स्थापित है। ये तीनों शिवलिंग मंदिर के पास बने एक जलकुंड से निकले थे। इनकी जलहरि दक्षिण भारत से आई है। लोग इस मंदिर को त्रयंबक महादेव कहते हैं।
श्रद्घालुओं की मान्यता है कि यहां सावन ही नहीं किसी भी सोमवार को जल चढ़ाओ फल अवश्य मिलता है। इस शिवालय की स्थापना 41 साल पहले हुई थी लेकिन एक दशक से इसकी महत्ता बढ़ी। नए मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद श्रद्घालुओं की संख्या बढ़ने लगी है। लोग अब सावन और शिवरात्रि ही नहीं बारह माह किसी भी दिन आराधना के लिए पहुंचते हैं। मंदिर की खासियत है कि यहां एक पहाड़ी नाला का पानी मंदिर के नीचे स्थित कुंड से होकर गुजरता है।
वहीं मंदिर में एक साथ तीन शिवलिंग की स्थापना की गई है। गर्मियों में नाला सूख भी जाए तो कुंड में पानी बना रहता है। इसी कुंड के पानी से श्रद्घालु तीनों शिवलिंग को जलाभिषेक करते हैं। यह शिवलिंग इसी कुंड के सफाई के दौरान प्राप्त हुई थी। बाद में नवनिर्मित मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के दौरानजलहरि दक्षिण भारत से मंगवाई गई है।
इसलिए इसे त्रयंबक महादेव भी कहा जाता है। रविवार को बीजापुर से पहुंचे श्रद्घालु दंपति ने बताया कि उनकी पुत्र प्राप्ति और व्यापारिक सफलता इसी मंदिर के आशीर्वाद से प्राप्त हुआ है। इसलिए वे पिछले पांच साल से जब इच्छा होती है, भगवान की पूजा और दर्शन के लिए किसी भी दिन पहुंचते हैं।
मंदिर और आश्रम के केयर टेकर स्वामी विशुद्घानंद सरस्वती बताते हैं कि आश्रम के संस्थापक और मंदिर स्थापना के प्रणेता स्वामी सदाप्रेमानंद ने यहां शिवाराधना 1970 के दशक में शुरु किया था। इसके बाद वे इस पहाड़ीनुमा चट्टान में एक साल तक तपस्या भी की और आदिवासियों को मांस-मदिरा से दूर रहने की सलाह देते आध्यात्म से जोड़ना शुरु किया था।
उनकी हत्या के बाद अन्य श्रद्घालुओं के सहयोग से 2015 में मंदिर बनाकर शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की गई। यह मंदिर और यहां संचालित आश्रम ऋषिकेश आश्रम काशी से संबंद्ध हैं। इसलिए यहां के बच्चों को वैदिक संस्कार भी दिए जा रहे हैं।