मैं नहीं समझ पा रहा हूँ यहाँ लिखना उचित है या नहीं लेकिन मेरे मन में एक ऐसी चुभन है जिसे मुझे किसी न किसी तरह आप तक पहुँचाना है। संविदा, ये संविदा शब्द एक ऐसा तंज है जिसे सिर्फ एक संविदा कर्मचारी ही समझ सकता है मुझे नहीं पता की सभी संविदा कर्मियों की हालत क्या है लेकिन मेरे राज्य मप्र में संविदा कर्मियों की हालत ठीक उस तरह की जो हालात अंग्रेजों के समय भारतीय कर्मचारियों की थी। बराबर पद लेकिन वेतन अलग अलग, बराबर पद लेकिन सुविधायें अलग अलग।
अलग-अलग क्या जमीन आसमान का अंतर है। एक संविदा अधिकारी की वेतन एक रेगुलर भृत्य कर्मचारी के बराबर है। यहाँ में बात कर रहा हूँ एक अधिकारी की, जो है तो अधिकारी लेकिन संविदा है और उसका वेतन उसी के ऑफिस के रेगुलर भृत्य से कम है तो माननीय प्रधानमंत्री जी बताइये क्या हालत होंगे उस ऑफिस के ?
अगर हम सुविधाओं की बात करे तो हमे सिर्फ 13 दिन का आकस्मिक अवकाश मिलता है इसके अलावा कुछ भी नही यहाँ तक की मेडिकल भी नहीं, यानि की अगर हम बीमार भी हो जाये तो हमारा वेतन कटना निश्चित है। शासन की और से कोई सुविधाएं मिलती नहीं है। अगर कोई संविदा कर्मचारी मर भी जाये तो उसके परिवार को कोई फण्ड में एक रुपया तक नहीं मिलता है।यहाँ वर्षो से संविदा कर्मचारी कार्यरत है कितने तो अपनी पूरी जिंदगी संविदा में ही काट चुके है।
मप्र में अलग अलग विभागों के संविदाकर्मियों की अलग अलग नीति है। मैं ये बात आज तक नहीं समझ पाया हूँ अलग अलग विभागों में अलग अलग नीति क्यों है शिक्षा विभाग के संविदा कर्मियों का संविलियन हो जाता लेकिन अन्य किसी विभाग में ऐसा नहीं है। मेँ तो अपनी किस्मत को कोसने लगा हूँ की किस खराब पल में मेरी नॉकरी लगी काश मुझे पहले ही पता होता की संविदा कर्मियों के स्थिति ऐसी है क्योंकि उस समय में तैयारी कर रहा था और किसी न किसी जगह रेगुलर लग ही जाता लेकिन इस नॉकरी को मैने 03 साल दिए अब मेरी तैयारी पिछड़ चुकी है लेकिन इस संविदा नॉकरी से मुझे ये तक उम्मीद नहीं है कि में कहीं इस संविदा नॉकरी के अनुभव को लगा सकूँ क्योंकि मप्र सरकार संविदा कर्मियों के अनुभव को निरस्त कर देती है। मुझे आज दुःख इस बात का है कि मेरा एक मित्र जो कौशल विकास विभाग में 03 वर्ष से कार्यरत था उसको आज दिनाँक 30/06/2016 को हटाने का आदेश आ गया।
अतुल दुबे
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