नईदिल्ली। इन दिनों जो चर्चा में है वो आनंदीबेन का इस्तीफा नहीं बल्कि अमित शाह का शॉट है। जिसमें आनंदी बेन स्टेडियम के पार जाकर गिरीं। उन्होंने उम्र 75 के कारण इस्तीफा नहीं दिया बल्कि अमित शाह की गुटबाजी से परेशान होकर दिया है। हालात यह थे कि उनकी अपनी केबिनेट में उनका विरोध होने लगा था। पहले पटेल आंदोलन को हवा दी गई थी, फिर ऊना कांड को। टारगेट था आनंदीबेन को उड़ाना। दोनों मोदी के प्रिय कार्यकर्ता हैं परंतु दोनों के बीच हमेशा तलवारें खिचीं रहतीं हैं।
जब से वो सीएम बनीं उनकी राहों में रोड़े अटकाए जा रहे थे। वो मोदी से इसकी कई बार शिकायतें भी कर चुकीं थीं। पटेल आंदोलन और ऊना कांड को आनंदीबेन के खिलाफ हवा दी गई। वो अमित शाह और उनके समर्थकों की चालबालियों से नाराज थीं, इसलिए उन्होने फेसबुक पर अपना इस्तीफा पोस्ट किया। सूत्रों के अनुसार दो महीने पहले ही तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका इस्तीफा नामंजूर किया था। पार्टी के आला नेताओं को उनके इस्तीफे से आश्चर्य नहीं हुआ।
काफी अहम फैसले लिए
पिछले कुछ दिनों में उन्होंने काफी अहम कदम उठाए थे। जैसे, सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह में बढ़ोत्तरी, पाटीदार आंदोलन के समय दर्ज हुए मामले वापस लेना, छोटी गाडि़यों के लिए टोल को हटाना, औद्योगिक नीति में बदलाव। इस्तीफे की जानकारी सार्वजनिक करने से कुछ ही देर पहले उन्होंने छह लाख रुपये सालाना से कम आयर वाले परिवार की लड़कियों के लिए मेडिकल और डेंटल डिग्री की पढ़ाई मुफ्त की थी, लेकिन उनके फैसलों को जन जन तक पहुंचाने के बजाए भाजपा का एक बड़ा वर्ग उनके खिलाफ उठने वाले मुद्दों को हवा दिया करता था।
अमित शाह के इशारों पर चलती है गुजरात की बीजेपी
आनंदीबेन के करीबी सूत्रों के अनुसार उन्होंने अपने मेंटर ‘नरेंद्र भाई’ को अगले साल चुनाव और वाइब्रेंट गुजरात के आयोजन के लिए नए नेता को चुनने में मदद के लिए पद छोड़ा लेकिन यह कहना आसान है। पार्टी में उनके खिलाफ विरोध था। मोदी ने पीएम बनने के बाद आनंदी बेन को चुना था लेकिन पटेल आंदोलन के बाद पार्टी ने उन्हें अलग थलग कर दिया। यहां तक कि मोदी का समर्थन भी उन्हें पार्टी के कामों पर पकड़ नहीं दे पाया। बताया जाता है कि कैबिनेट के ही कुछ साथियों ने उनके खिलाफ काम किया। सूत्रों का कहना है कि उन्होंने अपने एक समर्थक को बताया था कि पटेल आंदोलन शुरू होने पर पार्टी ने उनका साथ नहीं दिया। उनका मानना था कि पार्टी कैडर और नेताओं ने अध्यक्ष अमित शाह के आदेश माने।
अमित शाह कर रहे थे साजिश
आनंदीबेन और अमित शाह के बीच रिश्ते ठीक नहीं हैं। दोनों पीएम मोदी के करीबी हैं लेकिन आधिकारिक कार्यक्रमों के अलावा दोनों कभी नहीं मिले। दिल्ली में अमित शाह के बढ़ते प्रभाव ने इस खाई को और चौड़ा कर दिया। आनंदी बेन को आशंका थी कि जो भी राजनीतिक समस्या उनके सामने आ रही है वह साजिश के तहत की जा रही है। उन्होंने इस बारे में मोदी से शिकायत भी की लेकिन उनके विरोधियों ने भी ऐसी ही शिकायतें की।
ऊना कांड को गुटबाजियों ने हवा दी
इस बार मोदी के लिए उन्हें पद पर बने रहने को कहना कठिन था। ऊना मामले के बाद से वह राजनीतिक बोझ की तरह लग रही थी। ऊना मामले के चलते देशभर में भाजपा के खिलाफ दलित विरोधी होने के आरोप लगने लगे। इसी के चलते उत्तर प्रदेश में अमित शाह की सभा रद्द करनी पड़ी।
दावेदारों से ज्यादा दिग्गजों में खींचतान
ज्यादातर जानकारों का कहना है कि मोदी अमित शाह को गुजरात वापस नहीं भेजेंगे क्योंकि उन्हें उत्तर प्रदेश में उनकी जरूरत है लेकिन गुजरात में भी उनके पास सीमित विकल्प ही हैं। नितिन पटेल और विजय रुपाणी सीएम पद की दौड़ में तो हैं लेकिन पक्के दावेदार नहीं हैं। नितिन पटेल काम में देरी के लिए जाने जाते हैं हालांकि उनका पटेल होना उनके पक्ष में हैं। आनंदीबेन का समर्थन भी उन्हें हैं। रुपाणी को अमित शाह का समर्थन है इसलिए आनंदीबेन का उन्हें सपोर्ट करना मुश्किल है लेकिन ज्यादातर भाजपा विधायक भी रुपाणी के साथ हैं। हालांकि गुजरात के संदर्भ में मोदी का रिकॉर्ड रहा है कि वे यहां पर सबको हैरान करते रहे हैं।