नईदिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि पासपोर्ट अधिकारी किसी भी आवेदनकर्ता को यात्रा दस्तावेज में उसके पिता के नाम का जिक्र करने पर जोर नहीं दे सकते। जस्टिस संजीव सचदेवा ने इस साल मई में उच्च न्यायालय के पूर्व के आदेश का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘पासपोर्ट में पिता के नाम का जिक्र करने के लिए जोर देने की कोई कानूनी जरूरत नहीं है।’’ अदालत ने कहा, ‘‘ इसके मद्देनजर, प्रतिवादी (क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय एवं अन्य) को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिकाकर्ता को पिता के नाम का उल्लेख करने पर जोर दिये बिना उसे पासपोर्ट जारी करे।’’
अदालत ने यह आदेश एक युवक की याचिका का निपटारा करते हुए दिया। जिसके पासपोर्ट के नवीकरण के आग्रह को एक क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि उसने अपने पिता के नाम का उल्लेख नहीं किया था। अधिकारियों ने उसके पूर्व के पासपोर्ट को भी रद्द कर दिया जो जून 2017 तक वैध था।
युवक ने यह दलील दी थी कि उसे 2007 में पासपोर्ट जारी किया गया था और उसने नवीकरण के लिए इस वर्ष आवेदन दिया था उसने कहा था कि उसकी मां ने साल 2003 में उसके पिता को तलाक दे दिया था। अब वो नहीं चाहता कि अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम कहीं भी दर्ज करे।