भोपाल। उसे आप शिक्षाकर्मी कहें या अध्यापक। पदनाम भले ही बदल दें परंतु उसकी किस्मत आज तक नहीं बदली। पहले भी अपनों की राजनीति का शिकार था आज भी यही हाल है। अध्यापकों के हित में जान की बाजी लगाने का दावा करने वाले आजाद अध्यापक संघ के नेताओं ने एक नया आदेश जारी करवाया है। अध्यापकों की मौत के बाद यदि अनुकंपा नियुक्ति ना दी जा सके तो हितग्राही परिवार को 1 लाख रुपए की सहायता दी जाएगी।
सोशल मीडिया पर आजाद अध्यापक संघ के वीर क्रांतिकारी जावेद खाने ने इस आदेश का पत्र पोस्ट करते हुए इसे अपने संगठन की बड़ी सफलता बताया है। वहीं दूसरी ओर कुछ अन्य अध्यापक संगठनों ने इस आदेश का विरोध शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि यह आदेश उनके साथ भद्दा मजाक है। एक अध्यापक की जान की कीमत 1 लाख रुपए कैसे हो सकती है। यह तो 40 रुपए प्रतिवर्ष में मिलने वाले दुर्घटना बीमा से भी कम है।
क्या होना चाहिए था
अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में अभ्यर्थी की योग्यता अनिवार्य नहीं की जानी चाहिए। अभ्यर्थी जिस योग्य हो उसे वैसी नौकरी दी जाती है। अनुकंपा का अर्थ यही है। यदि योग्यता की अनिवार्यता तय कर दी तो फिर कल पात्रता परीक्षा की शर्त भी लगाई जा सकती है। शिक्षा विभाग में अध्यापकों के अलावा भी कर्मचारी होते हैं। अध्यापक की मौत के बाद यदि हितग्राही अनपढ़ भी है तो उसे शिक्षा विभाग में चपरासी की नौकरी दी जानी चाहिए। मात्र 1 लाख या इससे ज्यादा रुपए देकर अनुकंपा की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हुआ जा सकता।