उपदेश अवस्थी/भोपाल। मप्र में भाजपा तेजी से बिखरती जा रही है। होर्डिंग्स और विज्ञापनों में संगठन का नाम दिखता है परंतु मैदानों में अब संगठन दिखाई नहीं देता। हां कुछ भीड़ जरूर दिखती है जो नीति नियंताओं का भ्रम बनाए रखती है। भाजपा का कार्यकर्ता, भाजपा का अनुशासन, भाजपा की संवेदनशीलता, भाजपा की सक्रियता ऐसा कुछ भी मप्र में दिखाई नहीं देता है।
शिवराज सिंह की कृपा से प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पर आ जमे नंदकुमार सिंह चौहान दलबदलू विधायक को मंत्री बनाने का वादा निभाते हैं परंतु कार्यकर्ताओं के दर्द में कभी शामिल नहीं होते। शिवराज सिंह से फुर्सत होते हैं तो खंडवा की राजनीति में रम जाते हैं। उनकी दिनचर्या में भाजपा कहीं है ही नहीं। नंदकुमार सिंह की बातों में कार्यकर्ताओं को अहंकार दिखाई देता है। सोशल मीडिया पर भी कार्यकर्ताओं का दर्द सामने आने लगा है। गाहे बगाहे वो लिख ही देते हैं कि 'वो हमारे मालिक नहीं हैं, और हम उनके नौकर नहीं।' जहां सम्मान नहीं, वहां उपस्थिति भी नहीं होगी।
संगठन महामंत्री सुहास भगत को आए 4 महीने गुजर गए। उम्मीद थी कि प्राइवेट लिमिटेड बनती जा रही भाजपा वापस कार्यकर्ताओं तक पहुंचेंगी। कुछ अच्छा संदेश जाएगा परंतु ऐसा कुछ अब तक तो नहीं हुआ है। हां, इतना जरूर हुआ कि सुहास भगत ने तनाव देने वाले तत्वों से पर्याप्त दूरी बनाकर रख ली है। ज्यादातर मामले वो नंदकुमार सिंह चौहान की तरफ रेफर कर देते हैं। लगता है जैसे समय गुजार रहे हैं। या तो उन्हें अपनी मंशा के अनुसार काम करने का मौका नहीं मिल पा रहा है या फिर उनमें अब वो क्षमताएं ही नहीं बचीं। रियायमेंट नजदीक है, शायद पेंशन प्लान पर काम कर रहे हैं।
गुटबाजी की स्थिति यह है कि भाजपा के कोई भी 5 कार्यकर्ताओं को एक साथ खड़ा कर दो। एक घंटे में विवाद शुरू हो ही जाएगा। सत्ता मिलने के बाद भाजपा में घुस आए दलबदलुओं से जमीनी कार्यकर्ता नाराज है और मौका परस्तों के पास वक्त ही नहीं है संगठन की स्थिति पर विचार करने को। कुल मिलाकर मप्र में भाजपा की नींव दरक रही है। अजीब यह है कि रिपेयरिंग भी नहीं की जा रही है। कहीं ऐसा ना हो कि बर्बादी के जिस मुकाम पर कांग्रेस 60 साल में पहुंच पाई थी, भाजपा आने वाले 60 महीनों में ही पहुंच जाए।