वो कथा तो आपको याद ही होगी, भगवान शिव ने भस्मासुर को वरदान दिया था कि वो जिसके सिर पर हाथ रख देगा, वही भस्म हो जाएगा। एक दिन वो भगवान शिव के सिर पर ही हाथ रखने आ गया। उससे बचने के लिए भगवान शिव एक गुफा में जा छिपे। मान्यता है कि वह गुफा मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में स्थित धार्मिक पर्यटन स्थल नागद्वारी में है। इसके साथ कई प्राचीन कथाएं जुड़ीं हैं। इसकी यात्रा बहुत दुर्गम है इसलिए इसे छोटा अमरनाथ भी कहते हैं।
नागपंचमी पर लगता है विशाल मेला
मान्यता है कि नागद्वारी की यात्रा बहुत कठिन है। यह एक ऐसी यात्रा है, जिसको साहस, हौसले और धैर्य के बलबूते पर ही पूरा किया जा सकता है। यहां आने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति में जोखिम उठाने का हुनर होना जरूरी है। यूं तो सालभर यहां भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन श्रावण मास में तो नागपंचमी के 10 दिन पहले से ही कई प्रांतों के श्रद्धालु, विशेषकर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है।
यहां मौजूद है नागदेवता सैकड़ों मूर्तियां
नागद्वारी के अंदर 100 फीट लंबी चिंतामणि की गुफा है। इस गुफा में नागदेव की मूर्तियां विराजमान हैं। स्वर्ग द्वार चिंतामणि गुफा से लगभग आधा किमी की दूरी पर एक गुफा में स्थित है। स्वर्ग द्वार में भी नागदेव की ही मूर्तियां हैं। श्रद्धालुओं का ऐसा मानना है कि जो लोग नागद्वार जाते हैं, उनकी मांगी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
गर्मियों में छाया रहता है कोहरा
लगभग 100 वर्ष पूर्व आरंभ हुई नागद्वारी की यात्रा कश्मीर की अमरनाथ यात्रा की तरह ही अत्यंत कठिन और खतरनाक है। इसलिए इसे छोटा अमरनाथ भी कहते हैं। गर्मियों के मौसम को छोड़कर यहां हमेशा कोहरा बना रहता है। इस कोहरे तथा ठंड के मध्य यात्रा करने का अपना अलग ही आनंद है। नागद्वारी की यात्रा करते समय रास्ते में भक्तों का सामना कई जहरीले सांपों से होता है, लेकिन राहत की बात है कि यह सांप भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
भस्मासुर से बचने के लिए गुफा में छिपे थे शिव
नागलोक जाते वक्त रास्ते में जटाशंकर नामक स्थान है, जो कि एक पवित्र गुफा है। इस गुफा में कई सीढ़ियां उतरकर नीचे पहुंचने पर भगवान शिव की प्रतिमा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव जब भस्मासुर से बचने के लिए भाग रहे थे, तब वे यहीं छिपे थे। यहां शिवलिंग पर झुकी चट्टान तो ऐसी प्रतीत होती है मानो विशाल नाग ने अपना फन फैला रखा हो। इस गुफा से कुछ आगे जाने पर एक कुंड है।
इसलिए इस जगह का नाम पड़ा पचमढ़ी
जटाशंकर की गुफा के आगे पांडव गुफा है। यह पांच गुफाओं का एक समूह है। ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान कुछ अवधि इन गुफाओं में बिताई थी। इन पांच गुफाओं के आधार पर ही इस स्थान का नाम भी पचमढ़ी पड़ा है।
शिव के तेज को शांत करने निरंतर गिरती है जल धारा
यहा मौजूद हांड़ी खोह से आगे बढ़ने पर महादेव गुफा स्थित है। महादेव गुफा करीब 40-45 फुट लंबी और करीब 15 फुट चौड़ी है। इस गुफा में एक शिवलिंग तथा भगवान शंकर की एक प्रतिमा है। इस गुफा से कई मिथक जुड़े हैं। गुफा में एक लंबा सा कुंड है। कहते हैं शिवलिंग के तेज को शांत रखने के लिए उस पर निरंतर जल की बूंदें गिरती रहनी चाहिए। शिव के तेज का यह भान शायद प्रकृति को भी है और इसीलिए इस गुफा में प्रकृति ने स्वयं यह व्यवस्था कर दी है। यहां प्राकृतिक रूप से लगातार भूमिगत जल रिसता रहता है, जिसकी बूंदें शिवलिंग पर तथा जलकुंड में गिरती रहती हैं।