ललित गर्ग। अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल की जिन परिस्थितियों में आत्महत्या की घटना सामने आयी है, वह दुखद तो है ही, उसने अनेक प्रश्न खड़े कर दिये हैं। एक पूर्व मुख्यमंत्री की आत्महत्या का शायद यह पहला प्रकरण है, जिसने भारतीय राजनीति व्यवस्था के मंच पर बिखरते जीवन मूल्यों को उजागर किया है। यह घटना बताती है कि राजनीति की कड़वाहट कभी-कभी हमें किस हद तक ले जाती है। इस घटना ने दिमाग को सोचने को विवश किया है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि पुल के सामने मौत के अलावा कोई दूसरा रास्ता शेष नहीं बचा।
पुल की जिंदगी का अंत इस तरह होगा, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। इसी साल फरवरी महीने में उन्होंने मुख्यमंत्री का पद जिस तरह संभाला था, वह घटनाक्रम काफी विवादास्पद था। विवादास्पद तो पुल को मुख्यमंत्री पद की जिस तरह शपथ दिलायी वह घटनाक्रम भी बना। साढ़े चार महीने के भीतर ही वे इस पद से अलग कर दिए गए। इसके बाद पुल ने आत्महत्या कर ली है। बताया जा रहा है कि सत्ता जाने के बाद वह मानसिक यंत्रणा के दौर से गुजर रहे थे। उनकी आत्महत्या को लेकर तरह-तरह के विचार सामने आ रहे हैं, लेकिन राजनीति कड़वाहटों ने एक ऐसे राजनेता की बलि ले ली, जिसमें भविष्य की बहुत सारी संभावनाएं थीं।
47 वर्ष के आयु में पांच बार विधानसभा चुनाव जीतकर अरुणाचल जैसे खूबसूरत प्रदेश की राजनीति में अव्वल स्थान बनाने वाले पुल का आत्महत्या की ओर अग्रसर होने का यदि राजनीतिक कारण है तो यह भारतीय सम्पूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया पर कालिख लगने के समान है। भारतीय राजनीति में शीर्ष नेतृत्व की आत्महत्या की बात का गले उतरना बहुत आसान नहीं है, क्योंकि आमतौर पर हमारे नेता राजनीतिक पराजय से टूटते नहीं हैं, बल्कि वे तो उसके बाद और मजबूत होकर सामने आते हैं।
मुख्यमंत्री बनने से पहले तक वह राज्य के वित्त मंत्री थे। अंजव जिले के हवई निवासी पुल कमन मिशमी जनजाति के नेता थे। ऐसे इलाके या जनजाति का कोई व्यक्ति अगर आगे बढ़कर विधायक, मंत्री या मुख्यमंत्री बनता है, तो सबमें एक नई उम्मीद बंधती है। मनोचिकित्सकों और समाजशास्त्रियों ने आत्महत्या के तथ्यों पर काफी मंथन किया है। भारत में तो किसान और युवा लगातार आत्महत्याएं कर रहे हैं। लेकिन पुल जैसे राजनीति में तपे व्यक्तित्व का, जमीन से उठकर आसमानी ऊंचााइयों पर पहुंचे राजनेता का आत्महत्या करना अनेक सुलगते प्रश्नों का बयां कर रहा हैं। जो व्यक्ति सत्ता सुख भी भोगा और मेहनत-मजदूरी भी की, वह इतना कैसे अवसाद में जा सकता है कि उसे अन्तिम रास्ता आत्महत्या ही लगे?
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