भोपाल। मप्र में भले ही तबादलों पर से बेन हट गया हो परंतु अध्यापकों को इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा, अलबत्ता इस शिक्षा सत्र के बाद जरूर इसका फायदा मिल सकता है। अध्यापकों की तबादला नीति प्राथमिक तौर पर तैयार हो गई है। अब फाइल शिक्षामंत्री के पास है। इस नीति पर नगरीय विकास विभाग और पंचायती राज विभाग की मुहर भी लगना है। यदि सबकुछ ठीक ठाक और समय पर हो गया तो यह नीति केबिनेट में मंजूरी के लिए पेश की जाएगी एवं अगले शिक्षा सत्र से लागू हो जाएगी।
सूत्रों के मुताबिक नई नीति के तहत अब अध्यापकों से तबादलों के लिए ऑनलाइन आवेदन मंगाए जाएंगे। यह आवेदन 1 नवंबर से 31 दिसंबर तक बुलाए जाएंगे। अधिकारियों के मुताबिक आवेदन मंगाने के समय में बदलाव हो सकता है, लेकिन तबादले अप्रैल में शिक्षा सत्र पूरा होने के बाद ही किए जाएंगे। यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि तबादले की वजह से बच्चों की पढ़ाई में खलल न पड़े।
सीधी भर्ती के पदों पर ही होगा तबादला
तबादला नीति में तय किया गया है कि अध्यापकों के तबादले सीधी भर्ती के पदों पर ही होंगे। ऑनलाइन पोर्टल पर जिला पंचायत और नगरीय निकाय खाली पड़े पद की जानकारी डालेंगे, लेकिन 50 प्रतिशत प्रमोशन कोटे की सीट को ऑनलाइन पोर्टल पर नहीं दिखाया जाएगा, ताकि उस जगह काम कर रहे अध्यापकों के प्रमोशन में परेशानी न हो।
अधिकारियों के मुताबिक इस प्रक्रिया को अध्यापकों का संविलियन माना जाता है। इसके तहत यदि वे एक निकाय से दूसरे निकाय में जाते हैं तो उनकी पुरानी नौकरी खत्म मानकर दूसरे निकाय में नई नौकरी मानी जाएगी। इसलिए सिर्फ सीधी भर्ती के पदों पर ही यह संविलियन होगा।
पुरुष अध्यापक के लिए 7 साल की नौकरी
इस साल पहली बार पुरुष अध्यापकों के लिए भी तबादले का प्रावधान रखा गया है। सिर्फ वे ही अध्यापक तबादले के लिए पात्र होंगे जिनकी नौकरी 7 साल की होगी। आदिवासी इलाकों में यह सीमा 5 साल रखी गई है। संविदा शिक्षकों के तबादले नहीं होंगे।
इन प्रकरणों में मिलेगी प्राथमिकता
अधिकारियों के मुताबिक तबादले में गंभीर बीमारी के प्रकरणों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसमें खुद अध्यापक या उनके परिवार का कोई सदस्य यदि गंभीर बीमार होता है, तो सबसे पहले उनका ट्रांसफर किया जाएगा। माना जा रहा है कि नीति लागू होने में करीब एक महीने का समय लग सकता है।