राकेश दुबे@प्रतिदिन। आम आदमी को महंगाई के दंश से फिलवक्त तो कोई राहत दिखलाई नहीं पड़ रही. हालांकि मॉनसून उम्मीद के मुताबिक बेहतर रहने से महंगाई में कमी के रुझान का आकलन लगाया गया है। यकीनन राहत भी मिलनी चाहिए. लेकिन राजग सरकार की चिंता इस बात को लेकर ज्यादा है कि राहत कहीं अल्पकालिक साबित न हो जाए।
जीएसटी अगले साल से लागू होना तय माना जा रहा है कि इस कर-व्यवस्था के लागू होने पर महंगाई बढ़ेगी। अगर लक्ष्य निर्धारित करके आगे नहीं बढ़ी तो महंगाई के मोर्चे पर सरकार को काफी मुश्किलों भरे हालात का सामना करना पड़ सकता है। सरकार की कोशिश रही है कि किसी भी सूरत में महंगाई की दर छह फीसद के पार न जाने पाए।
प्रधानमंत्री का यह दावा भी ठीक नहीं है की बीते दो साल में उनकी सरकार ने महंगाई को छह फीसद की हद में रखा है। हालांकि महंगाई की वृद्धि दर मामूली बढ़ोतरी के साथ छह फीसद का आंकड़ा बीते जुलाई माह में ही पार कर चुकी थी, जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा महंगाई की दर बीते 23 माह के उच्चतम स्तर 6.07 फीसद पर पहुंच गई थी।
यह बढ़ोतरी लगातार चौथे माह दर्ज की गई थी। यह इस बात का प्रमाण है कि महंगाई को काबू में रखने के प्रयासों में कहीं न कहीं झोल है। इसी प्रकार खाद्य वस्तुओं के दामों में वृद्धि से थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति भी जुलाई माह में तेजी से बढ़ी. यह 3.55 फीसद पर जा पहुंची थी। इससे उद्योग जगत में चिंता व्याप गई है। उसने सरकार से ठोस कदम उठाने की मांग की है ताकि वे अड़चनें दूर हो सकें जिनसे मांग पक्ष कमजोर पड़ता जाता है। दरअसल, चिंता इस बात को लेकर है कि थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति से उपभोक्ता महंगाई बढ़ सकती है। ऐसा होता है तो मोदी सरकार और रिजर्व बैंक ने महंगाई को छह फीसद की हद में रखने का जो मंसूबा बांधा हुआ है, निष्फल हो सकता है। खुदरा और थोक, दोनों ही दरों में वृद्धि का रुझान है। इससे महंगाई के दुष्चक्र का ऐसा सिलसिला बन सकता है, जिससे पार पाने में सरकार को खासी मुश्किल होगी। इस क्रम में मुनाफाखोरी व जमाखोरी पर अंकुश लगाने की गरज से उसे कुछ कड़े फैसले करने पड़ सकते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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