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इसलिए विवाह के फौरन बाद सुरक्षा मुहैया कराने का उपाय कारगर हो सकता है, बशर्ते यह ठीक से लागू किया जा सके। यह भी देखा गया है कि पुलिस और प्रशासन में लोगों की रुचि भी ऐसे मामलों में कम होती है, क्योंकि उनका नजरिया भी समाज में प्रचलित धारणाओं के अनुरूप ही होता है। इसलिए इस पर सख्ती से अमल आस्त करने के लिए कोई कानूनी कदम उठाया जाए तो बेहतर हो सकता है।
बढ़ते शहरीकरण और लड़कियों में शिक्षा तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता से अपनी पृष्ठभूमि या सामाजिक दायरे से बाहर मेल-जोल बढ़ रहा है। इसलिए पुरानी मान्यताएं तेजी से टूट रही हैं। ऐसे दौर में स्त्रियों के खिलाफ उत्पीड़न की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। कन्या भ्रूण हत्या और बलात्कार की बढ़ती घटनाएं इसकी गवाह हैं। इनकी रोकथाम के लिए हाल में कड़े कानून बनाए गए हैं। बलात्कार के मामलों में तो वयस्कता की दहलीज पर खड़े किशोर अपराधियों पर भी वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने का कानून बन गया है। इसलिए ‘ऑनर कीलिंग’ के मामले में भी सख्त कानून समय की मांग है।
असल में जाति और धर्म की जकड़नें तभी टूटेंगी जब सामाजिक जागरूकता के साथ सरकारी नीतियों-कार्यक्रमों में प्रोत्साहन या सजा के प्रावधान कड़े होंगे। हालांकि, यह भी विचारणीय है कि प्रधान सूचना आयुक्त के निर्देश को केंद्रीय और राज्य सरकारी मशीनरी कितनी गंभीरता से लेती है। इसलिए बेहतर यही है कि इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारें पहल करें।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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