मप्र में फिर पेंशन घोटाले की तैयारी

Bhopal Samachar
भोपाल। मोदी सरकार लगातार आॅनलाइन होती जा रही है तो मप्र में शिवराज सरकार पुरातन परंपराओं की ओर लौट रही है। 'प्रधानमंत्री जनधन योजना' के तहत हर गरीब का बैंक खाता खोला जा चुका है। उसके पास एटीएम कार्ड भी है। बैंक के चक्कर लगाने का झंझट ही नहीं है फिर भी मप्र सरकार नगद पेंशन बांटने की तैयारी कर रही है। यह​ सबकुछ उस समय जब इसी मप्र में सबसे बड़ा पेंशन घोटाला हो चुका है और इसी घोटाले के बाद पेंशन को सीधे हितग्राही के खातों में ट्रांसफर करने की पॉलिसी बनाई गई थी। 

अगस्त से 3 जिलों में 'आपकी पेंशन आपके द्वार'
सामाजिक न्याय विभाग के नकद पेंशन बांटने के प्रस्ताव को सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर मंजूरी दी है। इसके तहत अगस्त से शहडोल, अनूपपुर और उमरिया में सामाजिक सुरक्षा, वृद्धावस्था और निराश्रित पेंशन नकद बांटी जाएगी। 

दलील क्या दी गई 
विभागीय मंत्री गोपाल भार्गव का कहना है कि आदिवासी बहुल इलाकों में बैंकों की शाखाएं कम हैं। 150 रुपए से 500 रुपए की पेंशन लेने हितग्राहियों को 10 से 12 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है, जो अव्यवहारिक था। यही वजह है कि प्रयोग के तौर पर तीन जिलों में योजना शुरू करने का फैसला किया है। 

आधार क्या बनाया गया
झाबुआ लोकसभा और मैहर विधानसभा के उपचुनाव के समय प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री को ये शिकायतें मिली थी कि पेंशन समय पर नहीं मिल रही है। विधायकों ने वन-टू-वन में भी ये मुद्दा उठाया था। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री ने नकद पेंशन बांटने के विकल्प पर विचार करने के निर्देश दिए थे। इसके मद्देनजर सामाजिक न्याय विभाग ने आदिवासी बहुल इलाके से प्रयोग करने का फैसला लिया है। शिकायत थी कि पेंशन नहीं मिल रही है, अर्थात बैंकों में नहीं आ रही है। समाधान निकाला गया कि नगद बांटेंगे। 

कैसे बंटेगी पेंशन
  • जनपद पंचायत के सीईओ हर माह की पांच तारीख को कोषालय में पेंशन बिल लगाकर राशि पंचायत के अकाउंट में डलवाएंगे। 
  • पंचायत के सरपंच और सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर से राशि निकालकर 10 तारीख को बांटी जाएगी।
  • पेंशन कलेक्टर द्वारा नियुक्त द्वितीय या तृतीय श्रेणी के एक कर्मचारी की मौजूदगी में बंटेगी।
  • हितग्राही से पावती ली जाएगी। अलग से एक रजिस्टर में रिकॉर्ड रखा जाएगा।


क्या समस्याएं आ सकतीं हैं
  1. यह मप्र का रिकार्ड है कि जनपद पंचायतों में ज्यादातर काम नियत समय पर नहीं होते। यहां तक कि न्यायालयों से आए नोटिसों एवं विधानसभा में लगे प्रश्नों का जवाब नियत समय पर नहीं दिया जाता, तो कैसे यह भरोसा कर लें कि सीईओ 5 तारीख को पेंशन बिल लगा ही देंगे। 
  2. हितग्राहियों को सरपंच-सचिव के हाथ जोड़ने पड़ेगे, नहीं तो पेंशन नहीं मिलेगी। जो हितग्राही पेंशन निकालने के लिए 10 किलोमीटर नहीं जा पाते, वो शिकायत करने 100 किलोमीटर दूर कलेक्टर के आॅफिस तक केसे जाएंगे। सरपंच-सचिव मप्र सरकार के एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी की मौजूदगी में पेंशन बांटेंगे। क्या गारंटी ली जा सकती है कि इसके बदले रिश्वत की वसूली नहीं होगी या दूसरे तरह के शोषण शुरू नहीं हो जाएंगे। हुए तो कैसे रोके जाएंगे। शिकायतें कहां होंगी, सुनवाई कौन करेगी, समाधान कैसे होगा। 
  3. मप्र की जिन पंचायतों ने मनरेगा की मजदूरियों में कमीशरखोरी की हो, क्या आप भरोसा कर सकते हैं कि वो पेंशन में कमीशरखोरी नहीं करेंगे। 
  4. बात यदि हितग्राही को सुविधा की है तो सारे समाधान उसके द्वार पर होने चाहिए परंतु इस तरह से तो समस्याएं उसके द्वार पर पहुंच जाएंगी। 


पहले हो चुका है घोटाला, इस बार कैसे रोकेंगे
मप्र में एक बड़ा पेंशन घोटाला हो चुका है। इंदौर में हुए इस घोटाले की जांच जस्टिस एनके जैन आयोग ने की थी। आयोग ने जांच में पाया था कि अकेले इंदौर में 15 हजार हितग्राही फर्जी पाए गए, जिनकी नियमित पेंशन निकल रही थी। 1 लाख 18 हजार हितग्राही जांच के दौरान मृत पाए गए। तो सरकार ने क्या प्रबंध किए हैं कि इस बार फर्जी हितग्राहियों के रजिस्टर नहीं बन जाएंगे। इंदौर में हुए घोटाले की जांच आसान थी क्योंकि वो केवल एक महानगर और 40 किलोमीटर के क्षेत्रफल का मामला था परंतु इस घोटाले की जांच कैसे करेंगे जो हर पंचायत के स्तर तक हो सकता है। 

कहीं यह वोट पक्का करने की रणनीति तो नहीं
कहीं सरकार ने इस तरह से अपना वोट बैंक पक्का करने की रणनीति तो नहीं बनाई। इस योजना से हर हितग्राही सरपंच-सचिव के सामने गिड़गिड़ाता मिलेगा। ऐसे में आसानी से उसे बाध्य किया जा सकता है कि वो बताए प्रत्याशी को ही वोट करे, नहीं किया तो अगले महीने से पेंशन रजिस्टर से नाम ही काट दिया जाएगा। राजनीति, सरकारी काम पर नियंत्रण के लिए होती है, यदि नेता खुद सरकारी काम करने लगे तो...। 

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