सरकारी बँगलें और मध्यप्रदेश

राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश सरकार ने कोई 6 माह पूर्वं एक आदेश बड़ी चतुराई से निकाला था, जिसमे कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले छोड़ने थे। निशाने पर भाजपा की एक केन्द्रीय मंत्री आ गई। आदेश स्थगन के नाम पर तलवार की तरह लटका हुआ है। अब सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश को लेकर जो निर्णय दिया है, वह मध्यप्रदेश सहित सारे राज्यों में फैली इस बीमारी का इलाज है। जहाँ बंगला और गनमैन नेताजी के प्रभुत्व के पर्याय बन गये हैं।

देश को चलाने वाले नेता रोजाना गरीबों और वंचित लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते रहते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि हमारी व्यवस्था का नजरिया बिल्कुल उल्टा है। इसमें यह होता है कि जो व्यक्ति जितना ज्यादा शक्ति और सुविधा संपन्न होता है, उसके लिए व्यवस्था में उतनी ही ज्यादा सुविधाएं और रियायतें होती हैं। सत्ता में बैठे लोग यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें और उनके जैसे लोगों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं देने के लिए नियमों को यथासंभव लचीला बनाया जाए। इसलिए भले ही गरीब आदमी के लिए किसी भी तरह छत का जुगाड़ मुश्किल हो, लेकिन जो व्यक्ति सत्ता के शीर्ष पर होता है, उसके लिए यह इंतजाम होता है कि वह सरकारी खर्च पर जिंदगी भर आलीशान बंगले में रहे, जिसका रख-रखाव सरकार करे।

इसी तरह, आम आदमी का जीवन कितना ही असुरक्षित क्यों न हो, बड़े लोग सिर्फ अपना रुतबा बढ़ाने के लिए अपने आस-पास तमाम सुरक्षाकर्मियों का इंतजाम कर लेते हैं। कोई अदना सरकारी कर्मचारी रिटायर हो जाए, तो उसके लिए सरकारी मकान छोड़ना अनिवार्य हो जाता है, लेकिन बड़े अफसर कई बार दो-दो जगह सरकारी आवास अपने कब्जे में रखे रहते हैं। जैसे, देश में अमीर और गरीब के बीच बड़ी खाई है, वैसी ही खाई वीआईपी और आम नागरिक के बीच है। इस तरह, व्यवस्था चलाने वाले लोग, जिनको देश के आम लोगों ने देश चलाने और सबकी बेहतरी की जिम्मेदारी सौंपी है, वे ज्यादा ध्यान अपने लिए सुविधाएं जुटाने में लगाते हैं। सरकारी बंगलों पर काबिज ज्यादातर नेताओं के पास इतनी निजी संपत्ति है, जिससे वे आरामदेह जीवन जी सकते हैं, लेकिन वे मुफ्त के सरकारी साधनों का लोभ नहीं छोड़ पाते।

अच्छी बात यह है कि आजकल इसके खिलाफ आवाज भी उठने लगी है। मध्यप्रदेश में मंत्री के बंगलों में पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक, वर्तमान  विधायक और जाने कौन कौन रहते हैं। सुविधा से ज्यादा यह रौब का मामला है। इन तथा कथित बड़े लोगों में कुछ सदाशयता आना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!