इलाहाबाद। हाईकोर्ट ने कहा है कि होमगार्डों को इतना भत्ता दिया जाए जो एक कांस्टेबल के न्यूनतम वेतन के बराबर हो। हालांकि अदालत ने होमगार्डों की सेवा नियमितिकरण और नियमित वेतन देने की मांग नहीं मानी है। मगर ड्यूटी भत्ता बढ़ाने की उनकी मांग को स्वीकार करते हुए सरकार को तीन माह में निर्णय लेने को कहा है।
इस आदेश से उत्तर प्रदेश के करीब एक लाख 18 हजार से अधिक होमगार्डों को सीधा फायदा मिलेगा। होमगार्ड रामनाथ गुप्ता और अन्य की याचिका पर न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय ने यह आदेश दिया। याची के अधिवक्ता विजय गौतम ने बताया कि होमगार्ड वही काम कर रहे हैं जो नियमित पुलिस का कांस्टेबल करता है। इसलिए उनको नियमित वेतन का भुगतान होना चाहिए साथ ही होमगार्डों की सेवा नियमित की जानी चाहिए। इससे पूर्व श्रीकृष्ण यादव केस में हाईकोर्ट ने होमगार्डों के मामले में विचार करने का निर्देश दिया था।
सरकार ने एक विशेष कमेटी का गठन किया। कमेटी ने 14 जनवरी 2013 को बैठक की। इसमें कहा गया कि होमगार्डों का कार्य पुलिस के समान नहीं है। उनको पुलिस के समान विशेषाधिकार भी प्राप्त नहीं है। होमगार्ड कानून-व्यवस्था में पुलिस की मदद करते हैं। वह स्वैच्छिक बल के सदस्य हैं और उनको वेतन नहीं दिया जाता है।
कमेटी ने होमगार्डों को राज्य कर्मचारी नहीं माना और न ही उनको पुलिस के समान न्यूनतम वेतन का हकदार माना है। कोर्ट ने कहा कि होमगार्ड अधिनियम की धारा 10 के तहत होमगार्ड लोक सेवक हैं, मगर वह सिविल पद धारण नहीं करते हैं। मगर उनके काम की प्रकृति को देखते हुए वह न्यूनतम वेतन के समान भत्ते पाने के हकदार हैं। कोर्ट ने कहा कि विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट सुप्रीमकोर्ट द्वारा होमगार्ड रक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के मामले में दिए गए निर्णय के वितरीत है। प्रदेश सरकार को सुप्रीमकोर्ट के निर्णय का पालन करने का निर्देश दिया है।