भोपाल। 5 महीने पहले ओला कैब में एक महिला के साथ रेप की वारदात सामने आ चुकी है। उस समय थोड़ी हलचल हुई थी लेकिन फिर सबकुछ सामान्य हो गया। भोपाल में ओला कैब कई नियमों को तोड़कर चलाई जा रही है। उपभोक्ताओं को ठगा जा रहा है तो नियमों की भी धज्जियां उड़ाई जा रहीं हैं। बावजूद इसके सबकुछ जारी है। आरोप है कि ओला कैब की ओर से आरटीओ को चुप रहने के लिए नियमित नजराना मिलता है।
इंदौर में आरटीओ ने ओला कैब को बंद करने का नोटिस थमा दिया है। जबकि भोपाल में सबकुछ मजे से चल रहा है। न तो कैब के ड्राइवरों का पुलिस वेरिफिकेशन कराया गया और न ही इसकी डिटेल पुलिस और आरटीओ के पास है। नगर निगम सीमा में 500 से ज्यादा ओला कैब दौड़ रही हैं। नियमानुसार सिर्फ सफेद गाड़ियों को ही टैक्सी के रूप में पास किया जाता है, लेकिन भोपाल में रंग बिरंगी गाड़ियां ओला में लगी हुईं हैं।
दूसरी खास बात यह है कि कंपनी के पास संचालन के लिए सिर्फ टूर एंड ट्रैवल्स का लाइसेंस है। सिटी कैब चलाने का लाइसेंस ही नहीं है। बावजूद इसके इनका संचालन शहर में धड़ल्ले से हो रहा है। कैब के ड्राइवर का बैज नंबर नहीं है। यही नहीं, उसे ऐसे किसी बैज के बारे में कोई जानकारी भी नहीं है। यहां तक की इन कैब में कोई पैनिक बटन भी नहीं मिला है। न ही गाड़ी मालिक की कोई जानकारी मिली और न ही रास्ता बताने वाला नेविगेशन।
ये नियम टैक्सी और कैब ऑपरेटर पर लागू होते हैं-
जीपीएस व जीपीआरएस हो।
ड्राइवर की फोटो, लाइसेंस, बैज और गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर डिस्प्ले होना चाहिए।
पैनिक बटन हो ताकि खतरे का आभास होते ही यात्री उस पैनिक बटन को दबा सके।
ड्राइवर का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं हो।
मालिक और ड्राइवर का पुलिस वेरिफिकेशन कंपनी को कराना होगा।
उपभोक्ताओं से लूट जारी है
परिवहन विभाग के नियमानुसार शहर में चलने वाली टैक्सियां एक निर्धारित दर से किराया ले सकती हैं परंतु ओला कैब बुकिंग दर्ज कराने के बदले भी पैसा लेती है, यह 40 से 80 रुपए तक होता है। इसके अलावा प्रति किलोमीटर किराया के साथ साथ प्रति मिनिट का किराया भी लिया जाता है। कहने को यह केवल 1 या 1.5 रुपए प्रतिमिनट है परंतु यदि आप 20 किलोमीटर चलते हैं तो यह 20 रुपए या इससे ज्यादा हो जाता है। पूरे शहर में 500 से ज्यादा ओला कैब हैं, जो 24 घंटे दौड़ रहीं हैं। कृपया गणना कीजिए, एक दिन का कितना और एक महीने का कितना।
इतना ही नहीं जब औला कैब की बुकिंग ज्यादा आती है तो यह दोगुना या इससे ज्यादा किराया वसूलते हैं। यह पूरी तरह से नियमों के खिलाफ है। कई राज्यों में इस मामले को लेकर औला कैब के खिलाफ कार्रवाई भी हुई है परंतु मप्र की राजधानी में प्रशासन चुप है। सवाल यह है कि यह अतिरिक्त लूट में से क्या कोई हिस्सा कार्रवाई करने वालों और आवाज उठाने वालों को भी मिलता है।