नई दिल्ली। दलित कार्ड के सहारे यूपी चुनाव जीतने की प्लानिंग कर रहे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सामने अब नया संकट आ गया है। दयाशंकर के बयान को मायावती ने जमकर भुनाया और दलित अस्मिता को चुनावी मुद्दा बना दिया है। इधर कांग्रेस पार्टी पहले से ही ब्राह्मण चेहरे को सामने करके सवर्ण कार्ड पर खेल रही है। सवाल यह है कि भाजपा को किस स्टेंड पर खड़ा करें।
संघ में इन दिनों चिंता और चिंतन का दौर चल रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर छोटे छोटे कार्यकर्ताओं तक दलित प्रेम का प्रदर्शन जारी था। सिंहस्थ जैसे भेदभाव रहित धार्मिक कार्यक्रम में समरसता की बात कर दी गई। आरक्षण के मामले में संघ की मूलभावना का मर्दन भी हो गया। बावजूद इसके मात्र एक बयान से दलित प्रेम का पूरा पहाड़ जमींदोज हो गया। सारा का सारा कुनबा फिर से मायावती के आसपास दिखाई देने लगा है।
अब संघ के दिग्गज चिंता में हैं। क्या करें। अध्ययन किया जा रहा है कि क्या वोटों का प्रतिशत बढ़ा दिए जाने से जीत की संभावनाएं बढ़ेंगी। समस्या यह भी है कि इस बार चुनाव त्रिकोणिय होगा या चतुष्कोणिय ? क्या राम मंदिर मुद्दा भाजपा को फिर से राजपाट तक ले जा पाएगा। मोदी की आंधी का अब असर होना नहीं है। तो ऐसा क्या करें कि यूपी चुनाव हाथ में आ जाए।
याद दिला दें कि आज तक देश के किसी भी हिस्से में बिना आंधी, हवा या आंदोलन के भाजपा सरकार नहीं बना पाई है। संघ माहौल बनाता है और वही माहौल भाजपा के लिए वोट में बदल जाता है। फिर चाहे राम मंदिर हो या मोदी की आंधी। सवाल यह है कि यूपी चुनाव में कौन सा तूफान प्लान किया जाए। वक्त गुजरता जा रहा है। अंतिम 6 महीनों में कुछ नहीं किया जा सकेगा। संघ को लंबा समय चाहिए। आजकल में तय करना होगा। यूपी में क्या करें। क्या कश्मीर का मुद्दा यूपी में काम आएगा। क्या कश्मीर के मुद्दे को चुनाव तक गर्म रखा जा सकता है। इस तरह के काफी सारे अध्ययन इन दिनों चल रहे हैं।