भोपाल। प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग एवं लाठीचार्ज के मामले में मप्र का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। फायरिंग के मामले में मप्र सरकार देश में नंबर 1 पर चल रही है जबकि लाठीचार्ज के मामले में दूसरे नंबर पर है। हम इस अध्ययन में जम्मू-कश्मीर को शामिल नहीं कर रहे क्योंकि वहां की परिस्थितियां अलग हैं।
एनसीआरबी के 2015 के आंकड़ों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में जहां 207 बार लाठीचार्ज हुआ तो उत्तरप्रदेश पुलिस ने 62 बार लाठियां भांजीं। वहीं मध्यप्रदेश में 12 बार लाठीचार्ज हुआ।
एनसीआरबी के आंकड़ों में एक और दिलचस्प तथ्य निकल कर आया है जिसके मुताबिक प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग कर उन्हें घायल करने के मामले में मप्र नंबर 1 पर है। 2015 में मप्र पुलिस ने चार बार फायरिंग की। इस दौरान 10 आम लोग और 7 पुलिसकर्मी घायल हुए।
ये केवल वो आंकड़े हैं जिन्हें सरकार ने अपने रिकॉर्ड में दर्ज किया है। यदि प्रदर्शनकारियों पर शिकायतों पर गौर किया जाए तो 2015 में मप्र में करीब 200 से ज्यादा प्रदर्शन लाठीचार्ज कर दबाए गए जबकि दर्जनों बार फायरिंग हुई।
कब हो सकता है लाठीचार्ज
लाठीचार्ज के स्पष्ट नियम है, जिनके मुताबिक आईपीसी की धारा 129 के तहत आपात स्थिति में उग्र भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया जाता है। मौके पर कार्यपालक दंडाधिकारी आदेश देते हैं। लाठीचार्ज के पहले पुलिस भीड़ को चेतावनी देती है। उसके बाद आंसू गैस के गोले छोड़े जाते हैं। इसके बाद भी प्रदर्शनकारी नहीं मानते हैं तो लाठीचार्ज किया जाता है।
ऐसे ही चला सकते हैं लाठी
लाठीचार्ज के दौरान पुलिसकर्मी को डंडा केवल कमर के नीचे ही मारने के निर्देश होते हैं।
डंडा जमीन के समांतर एक सीध में चलना चाहिए, पुलिसकर्मी ऊपर-नीचे और तिरछा डंडा नहीं चला सकता।
लाठीचार्ज का मकसद लोगों को घायल करना नहीं, बल्कि उनमें भय पैदा करना होता है।
पुलिसकर्मी को हेलमेट, बॉडी गार्ड, सिन गार्ड और वर्दी वाले जूते पहनने के निर्देश होते हैं।