शोएब सिद्दीकी। साथियों आज के लगभग सभी समाचार पत्रों में यह खबर प्रकाशित हुई कि 'अपाक्स' ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण की माँग की है। उन्होंने यह भी कहा है कि दिग्विजय सिंह ने 27% आरक्षण देने का वादा किया था। सपाक्स का अपाक्स से सवाल है कि:-
लगभग 13 वर्ष बाद यह बात उन्हें अब क्यों याद आयी। वे इतने वर्षों से कहाँ थे। क्या उन्हें बीजेपी से उम्मीद नहीं थी इसलिये इतने वर्षों चुप रहे या फिर उससे कोई समझौता कर बैठे थे। अब क्या उनको आभास हो रहा है कि प्रदेश में पुनः कांग्रेस का शासन आने वाला है इसलिए उन्होंने अभी से ये माँग करना फिर से शुरू कर दिया है और अब कांग्रेस द्वारा किया गया वादा पूर्ण करवा लेने की उन्हें उम्मीद है।
विश्लेषण
दरअसल भोपाल के साथ साथ प्रदेश भर में लगभग सभी अधिकारी कर्मचारी संगठन मृतप्रायः स्थिति में पहुँच रहे है, इन संगठनो की गिरती साख और *सपाक्स* की बढ़ती लोकप्रियता से यह सभी व्याकुल है। *अपाक्स* तो इतना विचलित है कि वो अपनी साख बचाने के लिए अजाक्स की गोदी में ही बैठ गया। अपाक्स की इस स्थिति के लिए उसके तथाकथित नेता ही जिम्मेदार है क्योंकि उसके द्वारा अजाक्स से हाथ मिलाने से हमारे सभी पिछड़ा वर्ग के भाई बहिन नाराज़ है। नाराज़गी का प्रमुख कारण यह है कि जब पदोन्नति में आरक्षण असंवेधानिक है उसका लाभ भी ओबीसी को नहीं मिलता फिर भी अपाक्स ने अजाक्स से हाथ मिलाया। इस नाराज़गी के चलते *सपाक्स* में ओबीसी वर्ग भी जुड़ गया। यदि *अपाक्स* पूरी ईमानदारी से ओबीसी वर्ग के हितों की लड़ाई लड़ता तो आज उसकी इतनी दुर्गत न होती।
अब बात 27% आरक्षण की
साथियों हम सभी जानते है कि संविधान में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% है। वर्तमान व्यवस्था में 20% ST को, 16%SC को और 14% OBC को आरक्षण प्राप्त है। अब आप ही सोचिये की OBC को 27% आरक्षण कैसे प्राप्त हो सकता है ? यदि कोई राजनितिक दल ऐसा करता भी है तो यह मात्र ओबीसी वोट बैंक को अपनी ओर खींचने का प्रयास होगा क्योंकि 27% आरक्षण मान न्यायालय के समक्ष टिक नहीं सकेगा। गुजरात का उदहारण हम सभी के समक्ष है । हाल ही में गुजरात सरकार ने सामान्य वर्ग के ग़रीबो को 10% आरक्षण दिया था जिसे मान उच्च न्यायालय गुजरात द्वारा यह कहकर खारिज़ कर दिया कि 50% से अधिक आरक्षण की संविधान अनुमति नही देता।
वे यदि यह माँग करते की SCST को मिल रहे 36%आरक्षण के प्रतिशत में कमी करके OBC का % बढ़ाया जाए तो वह मांग उचित होती। दरअसल यह बयानबाजी सपाक्स को कमजोर करने की साजिश के तहत की गई है। अपाक्स यदि सपाक्स के साथ खड़ा होता तो बेहतर होता क्योंकि सपाक्स आरक्षण विरोधी संस्था नही है। यह संस्था पदोन्नति में और क्रीमी लेयर को मिलने वाले आरक्षण की विरोधी है।