भोपाल। मेडिकल की पढ़ाई के लिए आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) से बेहतर संस्थान कौन सा हो सकता है। लोग एम्स में एडमिशन के लिए बड़ी बड़ी सिफारिशें तलाशते हैं, 1 करोड़ तक का डोनेशन देने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन भोपाल में एम्स के माथे पर दाग लग गया है। एम्स में एडमिशन लेने वाले 42 फीसदी छात्रों ने एम्स में पढ़ने का इरादा त्याग दिया है। वो एम्स छोड़कर चले गए हैं।
पहले-दूसरे चरण की काउंसलिंग में चयनित 97 में से 41 स्टूडेंट्स ने अन्य राज्यों के गुमनाम कॉलेजों में चले गए। एम्स के पहले बैच के विद्यार्थियों की पढ़ाई नवंबर में पूरी होने जा रही है, लेकिन उन्हें अभी तक डिलेवरी सहित कई प्रेक्टिकल का अनुभव नहीं मिला। एम्स में फुल फ्लेजेड अस्पताल भी नहीं है। इसके चलते विद्यार्थियों का एम्स से विश्वास उठ रहा है। एम्स की पहले-दूसरे चरण की काउंसलिंग में 100 में से 97 विद्यार्थियों का चयन एमबीबीएस में हुआ था। इनमें से ज्यादातर विद्यार्थियों ने एम्स की प्रवेश परीक्षा के बाद नीट दी थी।
इसमें चयन होने पर 41 विद्यार्थियों ने एम्स छोड़ अन्य राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में एडमीशन ले लिया। एम्स ने खाली हो गई सीटों को तीसरे चरण की काउंसलिंग में पूरा किया लेकिन इनमें से भी 5 विद्यार्थी छोड़कर चले गए। अभी 100 में से 95 सीटे भरी हैं। 5 सीटों के लिए 27 सितंबर को ओपन काउंसलिंग होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि एम्स की दुर्दशा के चलते टॉप स्टूडेंट्स ने इसे अलविदा कह दिया।
2012 में जब एम्स में मेडिकल कॉलेज शुरू हुआ था, तब 6 एम्स में से सबसे पहले एम्स भोपाल की सीटें भरी थीं। देशभर के विद्यार्थियों ने एम्स भोपाल को तरजीह दी थी लेकिन जैसे-जैसे एम्स पिछड़ता गया विद्यार्थियों का मोह भंग होता गया। पिछले तीन सालों में कई विद्यार्थियों ने एडमीशन के बावजूद एम्स छोड़ दिया। लेकिन इतनी बड़ी तादाद में पहली बार विद्यार्थियों ने इस साल एम्स छोड़ा है।