
सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रपति मुखर्जी ने अपने नोट में मोदी सरकार से कहा कि वह जनहित को ध्यान में रखते हुए इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर रहे हैं, लेकिन आगे से कभी कैबिनेट को बाइपास नहीं किया जाना चाहिए। आजादी के बाद से यह पहला मौका है जब कोई अध्यादेश कैबिनेट से पास कराए बिना ही राष्ट्रपति के पास भेजा गया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यापार एवं लेनदेन की नियम संख्या 12 का उपयोग करते हुए शत्रु संपत्ति कानून में संशोधन से जुड़ा अध्यादेश राष्ट्रपति के पास भेजा था।
ऐसा है अध्यादेश
48 साल पुराना यह कानून युद्ध के बाद पाकिस्तान या चीन में बस गए लोगों की छोड़ी हुई संपत्तियों के उत्तराधिकार या हस्तांतरण के दावों से जुड़ा है। शत्रु संपत्ति का मतलब किसी भी ऐसी संपत्ति से है, जो किसी शत्रु, शत्रु व्यक्ति या शत्रु फर्म से संबंधित, उसकी तरफ से संघटित या प्रबंधित हो। यह विधेयक इस साल की शुरुआत में लोकसभा ने पारित कर दिया था, लेकिन राज्यसभा से इसे मंजूरी नहीं मिल सकी।
विपक्षी दलों की आपत्तियों के बाद इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया। इस कानून में संशोधन से जुड़ा पहला अध्यादेश जनवरी में जारी किया गया था और दूसरा अध्यादेश 2 अप्रैल को जारी किया गया। इसके बाद 31 मई को तीसरा अध्यादेश लागू किया था. हालांकि तीसरी बार हस्ताक्षर करते हुए राष्ट्रपति ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि तीन महीने से ज्यादा वक्त तक संसद सत्र चलते रहने के बावजूद यह कार्यकारी आदेश जारी किया जा रहा है।