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यह आइडिया खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिया है। स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा के दौरान अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी का मामला सामने आया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि पीएचसी और सीएचसी में दांत के डॉक्टरों की तैनाती की जाए। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी नियुक्ति की तैयारी में जुट गए हैं। जल्द ही कैबिनेट से मंजूरी हासिल कर ली जाएगी। शुरू में 500 डेंटिस्टों को तैनात किया जाएगा।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और मेडिकल ऑफीसर्स एसोसिएशन ने इसका विरोध किया है। उनका कहना है कि गांवों या कस्बों में रहने वाला मरीज दोयम दर्जे का नहीं होता कि छोटे अस्पतालों इन डॉक्टरों रखा जा रहा है। क्या गारंटी है कि सरकार केवल स्वास्थ्य केन्द्रों तक ही इसे सीमित रखेगी। एमबीबीएस नहीं मिले तो कुछ साल बाद जिला अस्पताल भी आयुष डॉक्टरों के हवाले कर दिए जाएंगे।
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डेंटिस्ट और आयुष डॉक्टरों से एलोपैथी इलाज कराना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना है। इलाज में कोई शार्टकट नहीं चलता। यह मानवता के साथ खिलवाड़ है। एमबीबीएस डॉक्टर पीएचसी-सीएचसी में जाने को तैयार हैं, लेकिन सरकार को अच्छी सेवा शर्तें रखना होंगी।
डॉ. ललित श्रीवास्तव
संरक्षक, मप्र मेडिकल ऑफीसर्स एसोसिएशन
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एमबीबीएस डॉक्टर की जगह आयुष डॉक्टर व डेंटिस्ट की तैनाती गलत है। लीपापोती से समस्याएं हल नहीं होतीं। डॉक्टर सेवा भावना से मरीजों से जुड़ना चाहता है, लेकिन उसके लिए बुनियादी सेवाएं होनी चाहिए। ऐसी व्यवस्था करना गांव के लोगों के साथ भेदभाव है।
डॉ. अपूर्व त्रिपाठी
सचिव, आईएमए
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गुजरात, महाराष्ट्र, उप्र और उड़ीसा में आयुष डॉक्टरों को जरूरी एलोपैथी दवाएं लिखने की अनुमति है। मप्र में करीब 700 अस्पताल बिना डॉक्टर हैं। इनकी तैनाती है उन्हें जीवन रक्षक दवाएं मिल सकेंगी।
डॉ. राकेश पाण्डेय
प्रवक्ता, आयुष मेडिकल एसोसिएशन