
बताया जाता है कि 30 वर्ष पूर्व रोजगार की तलाश मे झाबुआ से यहां आये आदिवासी परिवारों ने सिंगोली तहसील के बड़ी पंचायत मे तालाब किनारे एक छोटा सा गांव बसाया था जिसे मामा बस्ती के नाम से जाना जाता है। लगभग 35 परिवारों की इस आदिवासी बस्ती पर कांग्रेसी वोट बैंक की छाप होने के कारण यहां विकास कार्य नहीं कराए जा रहे हैं।
कब मिली शाला भवन और शौचालय को मंजूरी
वर्ष 2009-10 मे शासन ने बस्ती मे स्कूल के लिए सर्वशिक्षा अभियान के तहद सेटेलाईट शाला भवन निर्माण को मंजूरी दी। निर्माण एजेन्सी के अधिकारों के बहाने राजनैतिक लाभ लेने तत्कालीन सरपंच ने इस भवन को पड़ोसी गांव खेंरो का झोपड़़ा मे बनवा दिया। ग्रामीणों ने इसका विरोध भी किया था लेकिन विधायक ने भी भूमिपूजन कर दिया। सरपंच ने विधायक के नाम पर स्कूल भवन बनवा दिया।
भवन लावारिस, शौचालय में कक्षाएं
अब स्कूल भवन खेंरो गांव में है, जबकि दस्तावेजों के अनुसार स्कूल 'मामा की बस्ती' में। बच्चे भी मामा की बस्ती में ही पढ़ने आते हैं। 2 किलोमीटर दूर जाने को कोई तैयार नहीं है। दस्तावेजों में स्कूल 'मामा की बस्ती' में है, इसलिए शिक्षक भी यहीं पढ़ाने आते हैं। वर्ष 2015 मे शासन ने मामा बस्ती स्कूल भवन मे शौचालय निर्माण के लिए 2.77 लाख रूपए की मंजूरी दे दी। सरपंच ने शौचालय 'मामा की बस्ती' में ही बनवा दिया। अब यही शौचालय स्कूल का कार्यालय है और यहीं पर बच्चों को पढ़ाया जाता है।
शिक्षक क्यों पढाते है शौचालय में
मामा बस्ती स्कूल मे संविदा शाला शिक्षक हेमराज भील पांचवी कक्षा के बच्चों को शौचालय मे ही पढाते हैं। स्कूल की एक क्लास बाहर मैदान में लगती है जबकि दूसरी शौचालय में।