
मसलन, उन्होंने साफ कहा कि उरी में हमारे पड़ोसी देश के कारण 18 जवानों को बलिदान होना पड़ा और आतंकवादियों को चेतावनी दी कि आतंकवादी कान खोलकर सुन लें कि यह देश आपको कभी भूलने वाला नहीं है। जब बराक ओबामा शासन में आए थे, उन्होंने कहा था कि आतंकवादियों जहां कहीं आप हो हम आपको ढूंढ़ेंगे और खत्म कर देंगे। मोदी ने ऐसा नहीं कहा, लेकिन भाव यही था। दूसरे, उन्होंने यह कहा कि पड़ोस के देश के हुक्मरान कहा करते थे कि हम हजार साल लड़ेंगे। काल के भीतर कहां खो गए कहीं नजर नहीं आते।
तो मोदी के ऐसा कहने के पीछे कुछ संदेश तो था ही। संदेश यह था कि पाकिस्तान अपने उस नेता को याद करे, जो हजार साल लड़ने का सपना देखा और एक ही युद्ध में अपनी मिट्टी पलीद करा बैठा। उसकी पुनरावृत्ति फिर हो सकती है। इसलिए यह कहना कि उन्होंने युद्ध की बिल्कुल बात नहीं की सही नहीं है, हां, प्रत्यक्षत: नहीं की। मगर परोक्ष तौर पर तो की। उन्होंने यह भी कह दिया कि आज के नेता तो अपना भाषण भी स्वतंत्र होकर नहीं देते। वे आतंकवादियों के आकाओं के लिखे हुए भाषण पढ़कर कश्मीर के गीत गाते हैं। इसके दो अर्थ हैं, एक पाकिस्तान के नेताओं की आतंकवादियों के साथ खुली मिलीभगत है। दूसरे, कश्मीर के आतंकवादियों का एजेंडा ही नेता आगे बढ़ा रहे हैं। यानी कश्मीर में सत्ता का लालच और आतंकवाद में कोई अंतर नहीं है। इस तरह प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के अंदर भी वहां के सत्ताधीशों के खिलाफ विरोध का भाव पैदा करने की रणनीति अपनाई। यह तत्काल सफल हो जाएगी ऐसा नहीं है, किंतु शुरुआत तो हुई। इसे लगातार विभिन्न मंचों से बोला जाएगा। अब नए सिरे से समर्थन देकर प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को जैसे का जैसा जवाब देने की कोशिश की है। यह दूरगामी नीति का अंग है, लेकिन पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ बाहर के साथ घर के अंदर भी वातावरण बनाने की यह कोशिश जारी रहेगी तो इसका असर पड़ेगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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