
पाकिस्तान की सरकार के लिए कश्मीर निश्चित रूप से मुद्दा हो सकता है। वहां कश्मीर के नाम पर सरकारें बनती हैं और गिर भी जातीं हैं। जब तक कुर्सी का डर नहीं था, मियां नवाज भी बड़े शरीफ थे। मोदी को जन्मदिन पर बुलाते थे। मोदी की माताजी को साड़ी भेजते थे, लेकिन जैसे ही कुर्सी हिलना शुरू हुई उन्होंन कश्मीर को सुलगाना शुरू कर दिया। अब तक पाकिस्तान छद्म युद्ध लड़ता था। कुछ अपराधियों को ट्रेनिंग देकर भारत की सीमाओं में दाखिल कराता था परंतु अब तो वो भारत के इनामी आतंकवादियों का अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर समर्थन कर रहा है। उन्हें युवा नेता और शहीद का दर्जा दे रहा है। बुरहानवानी का पाकिस्तान से कोई रिश्ता नहीं था। वो भारत में जन्मा, यहीं बड़ा हुआ। यहीं अपराधी बना और यहीं मारा गया। फिर भी पाकिस्तान में उसकी मौत पर सरकारी आयोजन हुए। पाकिस्तान ने आधिकारिक रूप से उसे शहीद कहा। शायद यह सबकुछ अपनी कुर्सी बचाने के लिए रचा जा रहा है।
लेकिन भारत में सरकारें ना तो कश्मीर के नाम पर बनतीं हैं और ना ही गिरतीं हैं। मोदी को महंगाई के खिलाफ, भ्रष्टाचार के खिलाफ जीतने की क्षमता रखने वाला नेता मानकर चुना गया। मोदी के चुनाव में ना जातिवाद था ना साम्प्रदायिकता और कश्मीर तो दूर दूर तक नहीं था। उनकी मजबूर हो सकती है कि वो कश्मीर को सुलगाए रखें लेकिन मोदी सरकार की ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। फिर क्यों मोदी सरकार कश्मीर में सुलगते रहने दे रही है। एक दर्द जो बार बार भारत के विकास में बाधक बन जाता है, इसका इलाज क्यों नहीं कर रही है।
अब तो पाकिस्तान ने भी आंखे निपोर लीं हैं। उसकी सेनाएं तैयार हैं। वो दहशत में नहीं है। ताकत दिखा रहा है। यदि इस बार जवाब नहीं दिया तो यह इतिहास में दर्ज हो जाएगा। पाकिस्तान सीना तानकर कह सकेगा कि उसने हाईवे पर लड़ाकू उतारे तो भारत पीछे हट गया। अब प्रधानमंत्री मोदी को तय करना होगा कि वो इतिहास में किस तरह से दर्ज होना चाहते हैं। भारत में उनके भक्त उन्हें कुछ भी पुकारें लेकिन इस बार कदम पीछे हटाए तो पाकिस्तान में उन्हें क्या पुकारा जाएगा, इस पर भी विचार करना चाहिए।