
क्या यह सच नहीं है कि हम जब भी ग्लोबल वार्मिंग की बात करते हैं, अपने आसपास के वायुमंडल में चढ़ते तामपान से आगे की बात सोच ही नहीं पाते या शायद सोचना नहीं चाहते। यदि हम सिर्फ इसी नजरिये से देखें, तब भी जुलाई को इस ग्रह पर अब तक की सबसे गरम जुलाई माना गया। एक नए शोध में आई बातों से हमें इस सच का असली कारण समझने में मदद मिलेगी। यह शोध बताता है कि हमारी ग्रीनहाउस गैसें जितनी उष्मा उत्सर्जित करती हैं, उसका 90 फीसदी ये महासमुद्र अपने अंदर समा लेते हैं। यानी इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि हमारी गलतियों को अपने अंदर समाहित करके महासमुद्र खुद को बडे़ खतरे की ओर धकेल रहे हैं। रिसर्च यह भी बताती है कि कई दशकों से यह खतरनाक सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। समुद्रों की ऊपरी सतह के गरम होने की यह रफ्तार एक डिग्री सेल्सियस के दसवें हिस्से की दर से दशक-दर-दशक जारी है। इस सबका सीधा और सबसे बुरा असर समुद्री जीवन पर पड़ रहा है।
धरती पर बढ़ती गरमी का असर बाढ़, सूखा और विस्थापन के रूप में दिखाई दिया, लेकिन जल के नीचे हमने जिस खतरे को जन्म दिया, उसका असर हम नहीं समझ पाए। यह सीधे तौर पर दिखाई भी नहीं देता। शोध में सामने आया कि हमारी मछलियां अब ध्रुवों की ओर भाग रही हैं, क्योंकि वहां उन्हें ज्यादा अनुकूल यानी ठंडा माहौल मिल रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि जीवन के अत्यंत मूलभूत हिस्से के साथ यह खिलवाड़ बहुत महंगा पड़ने वाला है।
आंकड़े बता रहे हैं कि यह खतरा अभी और बढे़गा, क्योंकि ग्रहों पर तापमान के बढ़ने की जो दर अभी एक डिग्री के दसवें हिस्से पर है, भविष्य में चार डिग्री तक पहुंच सकती है। अगर ऐसा हुआ, तो समुद्री सतह कई गुना तेजी से गरम होगी और हम बड़े खतरे की ओर बढ़ते जाएंगे। हालांकि हमारे पास सोलर पैनल और विंड टरबाइन जैसे डिवाइस हैं, जिनका ऑफसोर और तार्किक इस्तेमाल करके हम इस खतरे को कम कर सकते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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