
अरुण यादव इनमें से एक प्रमुख हैं। यादव के साथी नेता इसके कई तर्क जुटा रहे हैं। टीम यादव के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम पर कभी कांग्रेस एकजुट नहीं हो पाएगी। वो एक मासलीडर हैं लेकिन गुटबाजी के कारण उनका कांग्रेस में ही काफी विरोध हो जाता है।
कमलनाथ दिल्ली दरबार में भले ही कितनी भी पकड़ रखते हों परंतु मध्यप्रदेश में उनकी कोई खास पकड़ नहीं है। छिंदवाड़ा और आसपास को छोड़ दें तो शेष मध्यप्रदेश में आम जनता कमलनाथ को पहचानती तक नहीं। वो ना तो जोशीले भाषण दे पाते हैं और ना ही सरकार को कभी ठीक ढंग से घेर पाते हैं। अत: कमलनाथ तो जिताऊ केंडिडेट नहीं कहा जा सकता।
टीम यादव को लगता है कि अरुण यादव में ऐसी कोई खामी नहीं है। उन्होंने लगभग पूरे मध्यप्रदेश का दौरा कर लिया है। कार्यकर्ता उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। उनके पिता सुभाष यादव भी कांग्रेसी थे, अत: कांग्रेस उनके खून में है। मास लीडर हैं, जनता को जुटाना जानते हैं। मप्र में कांग्रेस के सभी गुटों का समर्थन हासिल कर सकते हैं। युवा हैं, ऊर्जावान हैं और सबसे बड़ी बात कि प्रदेश अध्यक्ष हैं। कांग्रेस की परंपरा रही है कि प्रदेश अध्यक्ष ही मुख्यमंत्री बनता है।