पुलिस FIR में जातियां लिखना गैरकानूनी: हाईकोर्ट

नईदिल्ली। हिमाचल हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को आदेश दिए हैं कि वह आपराधिक मामलों में दर्ज होने वाली एफआईआर में जातिसूचक शब्दों को लिखना तुरंत प्रभाव से बंद करे। न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर की खंडपीठ ने फैसले में कहा कि भारतीय संविधान के निर्माताओं की यह सोच थी कि जातिवाद बंद होना चाहिए लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि जातिवाद अभी तक बरकरार है। 

जातिवाद के पीछे कोई भी वैज्ञानिक, तार्किक, बौद्धिक व सामाजिक आधार नहीं है। यह हमारे संविधान के मूलभूत आधार के विपरीत है। कोर्ट ने पाया कि जब भी किसी आरोपी के खिलाफ  आपराधिक मामला दर्ज होता है तो उसकी जाति को विशेषतौर पर लिखा जाता है। यही नहीं शिकायतकर्ता की जाति भी दर्ज की जाती है। कोर्ट ने इसे गैरकानूनी करार दिया। 

कोर्ट ने कहा कि समाज में इज्जत और गरिमा से जीना हर व्यक्ति का अधिकार है। हमारा संविधान गैर जाति समाज की गारंटी देता है। सरकार का यह दायित्व है कि वह सुनिश्चित करे कि प्रत्येक व्यक्ति समाज में गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए स्वतंत्र हों।

बयान दर्ज करते वक्त भी जाति लिखना गलत 
फैसले के दौरान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पुलिस की ओर से सीआरपीसी के धारा 154 के तहत बयान दर्ज करते समय भी जाति लिखने को गलत ठहराया। कोर्ट ने इस प्रक्रिया को उप निवेशीय परंपरा बताया। साथ ही इसे भारतीय संविधान के खिलाफ बताते हुए कहा कि तुरंत प्रभाव से इस व्यवस्था को खत्म करने को कहा।

प्रधान सचिव को दिए निर्देश
हाईकोर्ट ने प्रधान सचिव गृह को आदेश जारी किए हैं कि प्रदेश के सभी जांच अधिकारियों को वादी, प्रतिवादी और गवाह की जाति का उल्लेख न करने के निर्देश जारी करने को कहा। साथ ही कहा कि रिकवरी मेमो, एफआईआर, जब्त करने की कार्रवाई, मरने से पहले के बयान में भी जाति का उल्लेख न किया जाए।

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