
कॉलेजों में 10-10 कैमरे भी लग जाएं तो कैम्पस की सुरक्षा बेहतर हो सकती है। कॉलेजों का कहना है वे उच्च शिक्षा विभाग के सभी निर्देशों और आदेशों का पालन नहीं कर सकते। इसके पीछे फंड की परेशानी बताई जा रही है। यह बात विभाग को भी पता है, लेकिन कॉलेजों को अपनी ओर से ही सुरक्षा बेहतर करने की मांग की जा रही है।
पुलिस की बात भी नहीं मान रही यूनिवर्सिटी
करीब 3 साल पहले यूनिवर्सिटी के आईआईपीएस में छात्रों के दो पक्षों के बीच मारपीट की घटनाएं हो चुकी हैं। इसमें पुलिस के उच्च अधिकारियों ने यूनिवर्सिटी कैम्पस का दौरा कर खामियां बताई थीं। उन्होंने यूनिवर्सिटी को मुख्य जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए कहा था, लेकिन तीन साल बाद भी व्यवस्था नहीं हुई। ऐसे में कोई घटना हो जाती है तो पुलिस यूनिवर्सिटी को भी जिम्मेदार मानेगी।
एक कॉलेज पर खर्च होंगे 50 हजार
कॉलेजों में सीसीटीवी कैमरे लगाने को लेकर सिक्युरिटी कंपनियों का कहना है एक हजार संख्या वाले एक कॉलेज की सुरक्षा के लिए करीब 50 हजार रुपए खर्च कर व्यवस्था बेहतर की जा सकती है। इसमें करीब एक महीने के फुटेज सुरक्षित कर सकते हैं। किसी भी घटना होने पर कॉलेजों का पक्ष भी इससे मजबूत होगा और नैक से अच्छी रैंक मिल सकेगी।
कई जगह खराब कैमरे दिखाए जा रहे
सबसे पहले यूनिवर्सिटी के गर्ल्स हॉस्टल से सीसीटीवी कैमरे लगाने की शुरुआत हुई थी। हालांकि कुछ ही दिन बाद असामाजिक तत्वों ने कैमरे तोड़ दिए। इसके बाद फिर यूनिवर्सिटी ने नए कैमरे लगाए, लेकिन ये भी चोरी हो गए। हॉस्टलों के बाहर कैमरों के साथ ही सुरक्षाकमियों की भी जरूरत पड़ रही है, लेकिन यूनिवर्सिटी के पास सीमित बजट है इसलिए करीब 110 सुरक्षाकर्मियों से यूनिवर्सिटी और हॉस्टलों का ध्यान रखा जा रहा है।
कॉलेजों को ही होगी परेशानी
यूजीसी लगातार उच्च शिक्षा विभाग को यूनिवर्सिटी और कॉलेजों की सुरक्षा बढ़ाने के निर्देश दे रहा है। इसका मकसद रैगिंग जैसे गंभीर अपराधों को रोकना भी है, लेकिन कॉलेज अपनी सुरक्षा को लेकर गंभीर दिखाई नहीं देते। ऐसे में कोई घटना होती है तो कॉलेज ही परेशानी में फंसेंगे।
डॉ. आरएस वर्मा
अतिरिक्त संचालक, उच्च शिक्षा विभाग