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तब इसे मंजूरी दे दी गई थी। अगले तीन साल में ही सरकार को इसके दुष्परिणाम देखने को मिल गए। तब तक आरटीई कानून भी लागू हो चुका था। जिसकी धारा-30 के तहत पहली से आठवीं तक न तो परीक्षा ली जा सकती है और न ही विद्यार्थियों को फेल किया जा सकता है।
वर्ष 2012 तक सरकार समझ चुकी थी कि पांचवीं-आठवीं का फिर से बोर्ड किए बगैर शैक्षणिक स्थिति नहीं सुधारी जा सकती, क्योंकि दसवीं का रिजल्ट लगातार बिगड़ रहा था। इसलिए राज्य सरकार ने दोनों कक्षाओं की परीक्षा बोर्ड करने का प्रस्ताव रखा। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व स्कूल शिक्षामंत्री पारसचंद्र जैन और स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी कई बार बोर्ड आधारित परीक्षा कराने की घोषणा कर चुके हैं।