भोपाल। यह गलती से हुआ या जानबूझकर शिक्षा माफिया के साथ मिलकर रची गई साजिश थी। परंतु आंकड़े बोलते हैं कि गरीब बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूलों में आरक्षित हुईं 70 प्रतिशत सीटें खाली छूट गईं। प्रक्रिया को इतना कठिन कर दिया गया कि बच्चे एडिमिशन ही नहीं करा पाए। 'शिक्षा का अधिकार' के तहत हर साल जनवरी में प्रवेश प्रकिया शुरू होती है। करीब 10 महीने गुजरने के बावजूद प्रदेश में अब तक केवल 1 लाख 70 हजार बच्चों को इस स्कीम के तहत निजी स्कूलों में प्रवेश मिला है। यह आंकड़ा चौंकाने वाला इसलिए है क्योंकि प्रदेश में 'शिक्षा का अधिकार' के तहत स्कूलों में सवा चार लाख से ज्यादा सीट रिजर्व की गई हैं।
परेशानी क्या आई
बच्चों के परिजन इसके लिए राज्य सरकार की ऑनलाइन प्रकिया को दोषी ठहरा रहे हैं। सरकार ने इस साल से सीटों के अलॉटमेंट के लिए ऑनलाइन योजना शुरू की है। परिजन बताते हैं, 'इस साल ऑनलाइन प्रकिया के तहत सीटों का आवंटन किया गया। पहले ब्लॉक ऑफिस स्तर पर फॉर्म को जमा किया जाता था। अब काफी बड़ा फॉर्म ऑनलाइन भरना होता है। साथ ही दस्तावेजों को भी ऑनलाइन अटैच करना होता है। आरटीई के तहत सिलेक्शन होने के बाद मिले मैसेज के बाद ही दस्तावेजों का वेरीफिकेशन होता है। पूरी प्रकिया काफी जटिल हो गई है।
सरकार की दलील क्या है
सरकार का इस पर अपना तर्क है। शिक्षा विभाग के बड़े अफसर केपीएस तोमर ने बताया कि, परिजन कुछ चुनिंदा स्कूलों में ही प्रवेश चाहते हैं। इस वजह से बड़ी संख्या में सीट खाली रह गईं। राज्य शिक्षा केंद्र के मुताबिक, इस साल मैन्युअल प्रकिया के तहत काफी गड़बड़ियों की शिकायतें मिली थीं। इस वजह से राज्य सरकार ने पारदर्शिता लाने के लिए ऑनलाइन प्रकिया को अपनाया है।
गलती या घोटाला
कुल मिलाकर नतीजा यह है कि 'शिक्षा का अधिकार' के तहत रिजर्व हुईं 70 प्रतिशत सीटें खाली रह गईं। अब अधिकारियों की दलीलें सही हैं या गरीबों की परेशानियां। यह तो जांच कराने पर ही सामने आ पाएगा। फिलहाल यह संदेह जरूर किया जा सकता है कि शिक्षा माफिया के साथ मिलकर अधिकारियों ने 'शिक्षा का अधिकार' का आॅनलाइन अपहरण कर डाला।