
मेधा पाटकर ने संवाददाताओं से कहा, ‘हम सिंधु जल संधि तोड़कर पड़ोसी मुल्क (पाकिस्तान) के साथ जल युद्ध छेड़ने के पक्ष में नहीं हैं। हम कतई नहीं चाहते कि नदियों को जंग का मैदान बनाया जाये। उन्होंने कहा, ‘नदियों के पानी के बंटवारे के मसले अंतरराष्ट्रीय हों या अंतरराज्यीय, इनका हल आम लोगों के आपसी संवाद के जरिये किया जाना चाहिये। राजनीति के जरिये इन मसलों का हल नहीं निकल सकता। मेधा पाटकर ‘क्या बड़े बांध आधुनिक भारत में उपयोगी हैं’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेने इंदौर आई थीं।
उन्होंने कहा, ‘सरकार यह घोषणा करते हुए बड़े बांधों का निर्माण शुरू करती है कि इनसे पनबिजली बनायी जायेगी और गांवों तक पेयजल एवं खेतों तक सिंचाई का पानी पहुंचेगा लेकिन बांधों का असली फायदा निजी कम्पनियों और पूंजीपतियों को पहुंचाया जाता है। उन्होंने देश में बड़े बांधों के जारी निर्माण कार्य को रोककर इन परियोजनाओं की विस्तृत समीक्षा किये जाने की मांग की। 61 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, ‘हम यह नहीं कहते कि बड़े बांधों से देश को कोई लाभ नहीं होता लेकिन हम चाहते हैं कि बड़े बांधों के ऐसे विकल्पों पर विचार किया जाये, जिससे लोगों को कम विस्थापन और प्रकृति को कम नुकसान झेलना पड़े। मेधा ने जल प्रबंधन की केंद्रीयकृत सरकारी व्यवस्था का विरोध करते हुए कहा कि नदियों के पानी के इस्तेमाल को लेकर फैसले करने का अधिकार आम लोगों को होना चाहिये।