इंदौर। कैलाश विजयवर्गीय भले ही आज देश भर का चिरपरिचित नाम हो परंतु एक दिन वो भी था जब नन्हा कैलाश नंदानगर में एक छोटी सी किराने की दुकान में अपनी मां का हाथ बंटाया करता था। सुबह 5 बजे से रात 2 बजे तक मां के मांगने पर भाग भागकर सामान उठाया करता था। आज एक बार फिर कैलाश विजयवर्गीय अपनी माताजी द्वारा शुरू की गई किराने की दुकान पर पहुंचे और वही सब किया जो बचपन में किया करते थे।
राजनीति में काफी बिजी होने के बावजूद भाजपा महासचिव हर साल धनतेरस पर कुछ समय के लिए इंदौर के नंदानगर स्थित अपनी दुकान पर बैठते है। इस दौरान वह ग्राहकों से उनके हाल-चाल पूछने के साथ हिसाब-किताब पर भी पूरी नजर रखते हैं।
एक वक्त परिवार की माली हालत ठीक नहीं होने पर विजयवर्गीय की माताजी ने इस दुकान की शुरुआत की थी। स्कूल-कॉलेज के दौर में वह कुछ देर के लिए इस दुकान पर बैठते थे। राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल करने के बावजूद वह धनतेरस के दिन गल्ले पर बैठना नहीं भूलते है।
विजयवर्गीय ने बताया कि बचपन के दिनों में वे अपनी मां के साथ किराना दुकान पर सामान बेचते थे। उन दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं, 'नंदानगर इलाके में उन दिनों मिल के मजदूर रहा करते थे, जो रोजमर्रा का सामान इसी दुकान से ले जाते थे। मिल के मजदूरों की वजह से उनकी मां और वे सुबह 5 बजे दुकान खोलते थे और रात 1 बजे बंद करते थे। यही उनकी आमदनी का जरिया था।