सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने स्पष्ट किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के 1995 के उस फैसले पर पुनर्विचार नहीं करेगी, जिसमें कहा गया था कि हिंदुइज्म/ हिंदुत्व एक जीवन पद्धति और मन:स्थिति है. इसलिए हिंदुइज्म/ हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगना चुनाव कानून के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं है।
सर्वोच्च अदालत ने यह मंगलवार को यह स्पष्टीकरण सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की एक याचिका का निराकरण करते हुए दिया. इस याचिका में तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय पर पुनर्विचार की मांग की थी, जिसके अनुसार हिंदुत्व कोई धर्म नहीं बल्कि एक जीवन जीने का एक तरीका है।
तीस्ता सीतलवाड़ ने अपनी याचिका में यह मुद्दा उठाया था कि इस मामले में स्पष्टता नहीं होने के कारण राजनीतिक दल वोट मांगने के लिए इस आधार पर धार्मिक अपील जारी करते हैं कि हिंदुत्व कोई धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति है.
उल्लेखनीय है कि 1995 में सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यह निर्णय दिया था कि हिंदुइज्म/हिंदुत्व के नाम पर की गई अपील का स्वत: यह अर्थ नहीं हो जाता कि वह अपील धर्म के नाम पर हिंदुओं से की गई है।