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आदिवासी कार्ड के सहारे बाला बच्चन
सत्यदेव कटारे के बीमार होने पर बाला बच्चन को कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। वो आदिवासी नेता हैं अत: इस कोटे से भी उनकी दावेदारी मजबूत होती है साथ ही एक डर भी बच्चन को मजबूत बनाता है। यदि नेताप्रतिपक्ष की सीट के लिए कोई नया नाम तय होता है तो यह माना जाएगा कि बाला बच्चन को हटा दिया गया। यह संदेश आदिवासी वोट बैंक के लिए खतरनाक बताया जा रहा है। बाला बच्चन के साथ नेगेटिव यह भी है कि पिछले विधानसभा सत्र में भाजपा के विधायकों ने सदन के भी बाला बच्चन की काफी तरफदारी की थी जबकि कांग्रेसी विधायकों ने बाला बच्चन पर जान बूझकर चुप रहने का आरोप लगाया था। इस संदर्भ में भोपाल समाचार की एक खबर पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कमेंट भी किया था। जिसे लेकर विधानसभा में काफी हंगामा हुआ।
पूर्व नेताप्रतिपक्ष अजय सिंह: अनुभव का लाभ
स्वर्गीय अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह पहले भी नेता प्रतिपक्ष का पद संभाल चुके हैं। अच्छा संसदीय ज्ञान, मुद्दों को उठाने का अलग अंदाज है। 6 बार के विधायक हैं। शिवराज सिंह को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ते लेकिन अर्जुन सिंह के निधन के बाद दिल्ली में कमजोर पड़ गए हैं और इन पर कार्यकर्ताओं से दूरी और मिलनसार न होने का आरोप लगता रहता है।
मुकेश नायक: ब्राह्मणवाद का फायदा
मुकेश नायक ब्राह्मण विधायक तौर पर अपना दावा पेश कर रहे हैं क्योंकि मध्यप्रदेश कांग्रेस में ब्राह्मण नेताओं के पास कोई अहम पद नहीं है। बेहतरीन वक्ता होने के अलावा सत्तापक्ष को तथ्यपरक मुद्दों के साथ घेरने में माहिर है। वो दावा करते हैं कि यदि उन्हें मौका मिला तो शिवराज सिंह को धूल चटा देंगे।
गोविंद सिंह: सिंधिया विरोध का नुक्सान
गोविंद सिंह भी अपना दावा पेश कर रहे हैं। समर्थकों का कहना है कि जमीनी नेता की छवि के साथ-साथ सत्ताधारी दल को मुश्किल खड़ी करने में गोविंद सिंह का कोई सानी नहीं है। अच्छे संसदीय ज्ञान के साथ 6 बार के विधायक गोविंद सिंह की छवि एक मजबूत नेता की है। दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाते हैं लेकिन पिछले दिनों सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का खुला विरोध प्रदर्शन करवाकर अपने नंबर कटवा चुके हैं। इसका सीधा नुक्सान मिल सकता है।
रामनिवास रावत: विधानसभा में सक्रिय विधायक
पांच बार से विधायक रामनिवास रावत पिछडा वर्ग के किसान नेता के रूप में जनता के बीच लोकप्रिय हैं। अच्छे वक्ता और जनहित के मुद्दों को जोर शोर से उठाने के लिए जाने जाते हैं। सदन और सडक पर सरकार को घेरने में रामनिवास रावत की अलग पहचान है। एक विधायक के तौर पर भी शिवराज सिंह सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं लेकिन सिंधिया समर्थक होने के कारण गुटबाजी का नुक्सान हो सकता है।
महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा: सिंधिया के सहारे
महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा की पूरी राजनीति ही सिंधिया के सहारे चलती है। कभी कभी सदन में सत्ता को भी घेरते हैं परंतु मुद्दे सोच समझकर चुनते हैं। यदि इशारा ना मिले तो बढ़ाए हुए कदम भी वापस खींच लेते हैं।