@कुमारअतुल। चूहों ने पुरानी झालरों को चाइनीज फूड समझकर कुतर डाला था। निकाल कर चेक किया तो पता चला कि ज्यादातर दम तोड़ चुकी हैं। पड़ोसन को इलेक्ट्रीशियन से झालरे लगवाते देख श्रीमती जी को नैसर्गिक संक्रमण हुआ कि मुझे भी इलेक्ट्रीशियन से ही झालर लगवानी है।
इससे पूर्व सोशल मीडिया से चीन विरोध का संक्रमण लग चुका था। गली में घूम रहे ठेले वाले से चीन की अर्थ व्यवस्था को जलाकर राख करने के संकल्प के साथ सैकडों दीये खरीदे जा चुके थे। दीये की खरीदारी के साथ ही गदगद भाव से बताया जा चुका था कि इससे अपने कुम्हार भाइयों को कितनी मदद पहुंचेगी।
बहरहाल अपनी स्थिति तो तरबूज वाली हो चली थी चाहे जिसके ऊपर चाकू गिरे अथवा वह चाकू पर गिरे कटना तो तरबूज को पड़ेगा। श्रीमती जी का चीन विरोध हो या भारत प्रेम अंटी तो अपनी ही ढीली होनी है। बहरहाल चीन के प्रति खदबदाते गुस्से से दांत भीचता मैं बाजार गया। गया तो देखा कुछ निठल्ले टाइप व्यापारी एक गत्ते में कुछ चाइनीज झालरे फूंक रहे थे। शायद उनका मकसद एक तीर से दो निशाना साधने का था।
चीन विरोध के साथ ही चूहों के कतरे माल को ठिकाने लगाने का आइडिया गजब का था। मैंने माथा पीट लिया। यह आइडिया मेरे दिमाग में पहले क्यों नहीं आया। वरना सुर्खुरू तो हम भी हो सकते थे। खैर बाजार का रंग देखकर दंग रह गया। लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल। दिवाली की दुकानों पर लाल चीन का ही कब्जा था। कहीं कहीं भारत भी था तो किसी कोने-अतरे में पड़ा था।
मैंने एक दुकानदार से पूछा क्यों भाई चीन का बहिष्कार कैसा चल रहा है। उसने ऊपर से नीचे ऐसा ताड़ा मानो मैं कोई एलियन हूं और किसी ऐसे ग्रह से आया हूं जिस ग्रह से पीके फिल्म में श्रीमान आमिर खान जी आए थे।
बोला कैसा विरोध । यह धंधे का वक्त है। (नजरें मानों हिकारत से कह रही थीं कि टाइम खोटा नहीं करने का) दुकानदार के शब्द थे भइया चाइना का ही सामान पूरी मार्केट में बिक रहा है। चीन की दस मीटर की लड़ी बाजार में तीस रुपए की है। भारतीय लोगे तो वैसी लड़ी के डेढ सौ देने होंगे। पूरे पांच गुना का फर्क। फिनिशिंग भी चाइनीज माल की बेटर। कोई ...तिया ही होगा तीस के डेढ सौ देगा। अरे भाई देश प्रेम के कीड़े इतने ही कुलबुला रहे हैं तो ऐसे देशी निर्माता का पता तो बताओ जो बीस तीस की झालरे बना कर बेच रहा है। देश प्रेमी तो हम भी हैं मगर हमारे धंधे पर लात क्यों मारते हो। सामान तो नगद पैसे चीन को चुका कर खरीदा जा चुका है।
विरोध करना है तो सरकार को बोलो क्यों आयात होने देते हो। चीनी कंपनियों को निवेश का न्योता क्यों देते हो। अरबों की लागत वाली वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा चीन से क्यों बनवाते हो। हम दस रुपये की झालर खरीदें तो देशद्रोही और आप चीन पर अरबों लुटा दे तो देश प्रेमी। यह कहां का इनसाफ है।
आप मंगल -चंद्रमा पर उपग्रह भेजने की बात करते हो लेकिन अपनी पूजा के लिए गणेश लक्ष्मी नहीं बना पाते। आप अपने बच्चों के खिलौने नहीं बना पाते। आप दिवाली के पटाखे नहीं बना पाते। आप होली की टोपियां, रंग गिफ्ट नहीं बना पाते। जो बनाते भी हो उसके दाम पांच गुना ज्यादा होते हैं। आप क्या खाकर चीन का मुकाबला करेंगे। चीन दुनिया भर में सबसे सस्ता सामान बेचता है। मोबाइल, लैपटॉप इलेक्ट्रानिक सामान बैटरी सब तो चीन से बनकर आ रहे हैं। क्या-क्या बहिष्कार करोगे। कुछ करो तो बहिष्कार भी करो, तभी अच्छा भी लगेगा।
मोदी सरकार ने मेक इन इन्डिया का शिगूफा छेड़ा है। कितने अंबानी, कितने आडानी, कितने टाटा ने बच्चों के खिलौने, वीडियो गेम्स, कैलकुलेटर, छोटे इलेक्ट्रानिक आइटम्स, चप्पले चीन की तरह सस्ता बनाने की फैक्ट्री लगाई है। एक भी नहीं। मोटा मुनाफा खाने की आदी भारतीय कंपनियों की दिलचस्पी इनमें नहीं है। चीनी कंपनियां आटे में नमक की तरह मुनाफा कमा रही हैं तो आप सोचते हैं कि नमक में आटा मिला मुनाफा काट लिया जाए।
लेकिन इस प्रवृत्ति से दरिद्रता ही आती है। फोब्स मैगजीन उठा लीजिए दुनिया की टाप फाइव कंपनियों में चार चीन की हैं, एक अमेरिकी है। भारत का तो दूर दूर तक नामोनिशान नहीं है । बेईमानी ज्यादा फलती नहीं। एक समाचार देख रहा था। चीन के एक ड्रग अधिकारी ने कम गुणवत्ता वाली दवा कंपनी को लाइसेंस जारी कर दिया। बात साबित हो गई। उसे फांसी दे दी गई। क्या अपने यहां किसी भ्रष्ट अफसर को ऐसी सजा मुमकिन है।
सबकुछ ऐसा ही चलता रहेगा। मोदी जैसे सियासतदान चीन से पटेल की प्रतिमा बनवाते रहेंगे। चीनी कंपनियों को निवेश के लिए भारत बुलाते रहेंगे। चंद लोग भारतीयता और देश प्रेम के नाम पर हमसे चीन और पाकिस्तान विरोधी नारे लगवाते रहेंगे। हम बेवकूफ़ बनते रहेंगे।
भारत माता की जय हो