
अचानक रात में हमला और इसके पहले कि कोई समझ पाए, ऑपरेशन खत्म। लेकिन इस मामले में बड़ी बात यह है कि भारत ने इस ऑपरेशन को गोपनीय नहीं रखा और इसके खत्म होते ही बाकायदा प्रेस कांफ्रेन्स करके पूरी दुनिया को इसकी जानकारी भी दी। इस प्रेस कांफ्रेन्स की खासियत यह थी कि इसमें जहां एक तरफ डॉयरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस थे, तो वहीं उनके साथ विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता भी मौजूद थे।
इन दोनों का एक साथ मीडिया से बात करना यह बताता है कि नियंत्रण रेखा को लेकर जो नीतिगत बदलाव हुआ है, वह सिर्फ सैन्य नीति का बदलाव नहीं है, बल्कि उसके साथ विदेश नीतिया यूं कहें कि देश के पूरे सत्ता प्रतिष्ठान की नीति इस संबंध में बदली है। वैसे उरी में सैनिक शिविर पर हमले के बाद से पूरे भारत में ही इस पर आम राय बनने लगी थी कि अब पाकिस्तान को सबक सिखाया जाना जरूरी है। इसे लेकर जनमत का दबाव काफी था, जिसकी वजह से भी सरकार को लगने लगा था कि सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कोई कदम उठाना या कोई जवाबी कार्रवाई करना जरूरी हो गया है।
लेकिन यहां महत्वपूर्ण सवाल यही है कि क्या पाकिस्तान इससे सचमुच कोई सबक सीखेगा? क्या सीमा पार से होने वाला आतंक का निर्यात अब सचमुच रुक जाएगा? शायद अभी वह समय नहीं आया कि हम किसी एक ऑपरेशन से बहुत ज्यादा उम्मीद बांध लें। आतंक को शह देने का एक बहुत बड़ा तंत्र पाकिस्तान में हरदम काम करता रहता है। उस पूरे तंत्र को जड़ से उखाड़ फेंकने का काम किसी एक ऑपरेशन से नहीं हो सकता, इसे भारत की सरकार भी अच्छी तरह समझती होगी। फिलहाल तो भारत ने एक संकेत भर दिया है कि अब वह हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठेगा। कुछ भी हो, इसका यह असर तो होगा ही कि अब किसी बड़ी हरकत को अंजाम देने से
पहले पाकिस्तान कई बार सोचेगा। जैसी कि उम्मीद थी, पाकिस्तान ने किसी भी सर्जिकल स्ट्राइक से इनकार किया है। स्वीकार वह कर भी नहीं सकता था, अगर वह स्वीकार कर लेता, तो पाकिस्तान सरकार और सेना पर जवाबी कार्रवाई के लिए घरेलू दबाव बन जाता। यह भी कहा जा रहा है कि इनकार के पीछे की मंशा तनाव को फिलहाल न बढ़ने देने की है, खासकर जब अंतरराष्ट्रीय दबाव पाकिस्तान के खिलाफ है। कूटनीति ही नहीं, सैनिक मोर्चे पर भी भारत की आक्रामकता उसे भारी पड़ रही है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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