राकेश दुबे@प्रतिदिन। पाकिस्तान के प्रायोजित आतंकवाद का मसला ब्रिक्स में भारत उठाएगा, तो चीन उसका विरोध करेगा और ऐसे किसी भी प्रस्ताव को रोकने की कोशिश करेगा। ऐसा तो सम्मेलन के पहले ही जग जाहिर हो चुका था |चीन ऐसा पहले भी कई बार कर चुका है, चाहे वह संयुक्त राष्ट्र में उठा कुख्यात आतंकवादी अजहर मसूद का मसला हो या फिर जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकी संगठन पर पाबंदी का मसला। इसीलिए ब्रिक्स सम्मेलन में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान को आतंकवाद का जनक कह रहे थे, तो चीन के प्रवक्ता आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के योगदान को गिना रहे थे। इन्हीं सब वजहों से पाकिस्तान चीन को अपना सदाबहार दोस्त कहता है। ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तानी आतंकवाद के मसले पर रूस का चुप्पी साध लेना हैरान करता है। उम्मीद यह थी कि सम्मेलन की घोषणा में जब पाकिस्तान और खासकर जैश-ए-मुहम्मद व लश्कर-ए-तैयबा का नाम आएगा, तो रूस भारत का साथ देगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वह भी तब, जब रूस की पहल पर सीरिया के आतंकवादी संगठन अल नुसरा का नाम इस घोषणा में शामिल कर लिया गया। अल नुसरा सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार के खिलाफ जेहाद छेड़ने वाला संगठन है, जो अपने बर्बर तरीकों से वहां खिलाफत कायम करना चाहता है।
रूस ने ऐसा रवैया क्यों अपनाया, इसे लेकर दो बातें कही जा रही हैं। एक तो यह कि रूस को पाकिस्तान में रक्षा-सामग्री का एक खरीदार दिखाई दे रहा है। इसीलिए पिछले दिनों पाकिस्तान और रूस की सेनाओं ने संयुक्त सैनिक अभ्यास भी किया था। हालांकि यह बात भी है कि पाकिस्तान के मुकाबले भारत रूसी रक्षा-सामग्री का ज्यादा बड़ा खरीदार है, लेकिन शायद रूस अपने नए खरीदार को नाराज नहीं करना चाहता। दूसरी, यह भी कहा जा रहा है कि रूस को इस समय चीन की जरूरत है और इसलिए वह किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर रूस के खिलाफ खड़े नहीं दिखना चाहता है। भारत रूस के इस द्वंद्व को शायद समझ भी रहा है, इसीलिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी था कि एक पुराना दोस्त दो नए दोस्तों से ज्यादा बेहतर होता है।
अमेरिका समेत पश्चिम के लगभग सभी देशों ने पाकिस्तान की निंदा की है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र महासभा तक में पाकिस्तान ने जिन बातों को उठाया, उनका भी सभी जगह विरोध हुआ है। लेकिन कूटनीतिक लड़ाई की बहुत-सी सीमाएं होती हैं, अपने हितों के कारण कुछ देश विरोधी के साथ खड़े दिखाई देते हैं। पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिशें अगर जारी रहीं, तो वे उसके साथ खड़े होने वाले देशों को भी देर-सवेर सोचने पर मजबूर करेंगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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