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सर्वविदित ही है कि कमलनाथ, स्व. संजय गांधी के पक्के दोस्त हुआ करते थे। वो कांग्रेसी से ज्यादा कारोबारी रहे हैं। छिंदवाड़ा से चुनाव के समय भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं से ज्यादा उनके वेतनभोगी कर्मचारी प्रचार किया करते थे लेकिन पिछले कुछ सालों से वो राजनीति के पहले पायदान पर सक्रिय होने का प्रयास कर रहे हैं। हाईकमान में तो उनका वजन पहले से ही बढ़ा हुआ है, मप्र में भी स्वीकार्यता आ जाए, इसकी कोशिशें जारी हैं।
पिछले दिनों मप्र में उन्होंने एक पकापकाया आम तोड़ा था। राज्यसभा की सीट पर विवेक तन्खा को जिताने का क्रेडिट कमलनाथ को दिया जा रहा है। वैसे भी यह सीट कांग्रेस की ही थी। बीजेपी ने बेवजह तनाव पैदा करने की नाकाम कोशिश भर की थी। अब नजर शहडोल पर है। इस सीट पर हवाएं पहले से ही शिवराज विरोधी बह रहीं हैं। कांग्रेस प्रत्याशी हिमाद्री सिंह के पास राजनीति का कोई विशेष अनुभव नहीं है परंतु युवा महिला होने के नाते और शिवराज विरोधी लहर के कारण उनकी संभावनाएं काफी बढ़ गईं हैं। रही सही कसर, भाजपा ने हिमाद्री को इनवाइट करके निकाल दी। इससे हिमाद्री का वजन और ज्यादा बढ़ गया।
शहडोल लोकसभा में सबसे ज्यादा विधायक कांग्रेस के हैं। यह लाभकारी प्रतीत हो सकता है परंतु ऐसी स्थितियां अक्सर नुक्सान भी पहुंचातीं हैं। यदि वोटर अपने विधायक से नाराज है तो लोकसभा प्रत्याशी के खिलाफ वोटिंग कर देगा परंतु यहां ऐसा नहीं है। शिवराज सिंह चौहान का विरोध, विधायकों के प्रति नाराजगी से कहीं ज्यादा है। अब बिगुल बज चुका है। हालात बदलते देर नहीं लगती। देखते हैं भाजपा इन हवाओं का रुख कब और कैसे बदल पाती है।