नेपानगर में भाजपा की प्रत्याशी: राजनीति से कभी कोई रिश्ता नहीं रहा

भोपाल। नेपानगर में हो रहे विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा ने स्वर्गीय राजेन्द्र दादू की पुत्री मंजू दादू को प्रत्याशी घोषित किया है। परिवारवाद और वंशवाद का हमेशा विरोध करने वाली भाजपा ने यह टिकट पूरी तरह से परिवारवाद को ध्यान में रखते हुए ही दिया है क्यों​कि मंजू दादू का भाजपा से कभी कोई रिश्ता ही नहीं रहा। अलबत्ता मंजू का राजनीति से ही कोई रिश्ता नहीं रहा। वो तो स्कूल/कॉलेज की खेल प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती थी। राजनीति में उसकी कोई रुचि ही नहीं थी। 

सामान्यत: नेताओं के बच्चे मतदाता बनने से पहले ही राजनीति में सक्रिय हो जाते हैं। अपने पिता के लिए वोट मांगते हैं। पिता की पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता बन जाते हैं। संगठन में एकाध पद भी हासिल कर लेते हैं परंतु मंजू के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है। मंजू ने कभी भाजपा में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई। महत्वपूर्ण पदों की बात छोड़ दीजिए, मंजू कभी वार्डस्तर की पदाधिकारी भी नहीं रही। 

भाजपा की ओर से भेजे गए मंजू के बायोडाटा में बताया गया है कि 27 साल की मंजू दादू ने अपने जीवन में अब तक नेहरू युवा केन्द्र की बॉलीवॉल प्रतियोगिता, ग्रामीण खेलकूद प्रतियोगिता, ऊंची कूद, खो खो, कबड्डी और साइकल रेस प्रतियोगिताओं में भाग लिया है। बस यही इनकी उपलब्धि है। एक सामाजिक संगठन मप्र आदिवासी सेवा मंडल में मंजू को 2012 से अब तक प्रदेश सहसचिव बताया गया है। 4 साल से एक सामाजिक संगठन में एक ही पद पर चली आ रही मंजू कितनी सक्रिय होंगी आप खुद अनुमान लगा लीजिए। 

बायोडाटा के दूसरे पन्ने पर इनके परिवार की राजनीति गाथा लिखी गई है। इनके दादाजी श्री श्यामलाल दादू खरगौन में पहले अनुसूचित जाति के कलेक्टर थे। राजनीति में उनकी कोई रुचि नहीं थी। मंजू की दादी ने घर में राजनीति की शुरूआत की। वो जनपद पंचायत में अध्यक्ष रहीं और भाजपा में सक्रिय कार्यकर्ता थीं। पिता श्री राजेन्द्र दादू ने भी 29 साल की उम्र तक राजनीति से तौबा बनाए रखी। 1962 में जन्मे श्री राजेन्द्र दादू ने 1991 में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। लंबे समय तक वो छोटे मोटे चुनाव लड़ते रहे, लेकिन 2008 में उन्हें विधानसभा का टिकट मिला और विजयी हुए। 2013 में उन्होंने अपनी लोकप्रियता प्रमाणित की और दूसरी बार भी विजयी हुए। अब उनकी बेटी मंजू दादू जनता के सामने हैं। भाजपा के इस निर्णय से असंतुष्ट कार्यकर्ता इसे भाजपा में वंशवाद का प्रमाण बता रहे हैं। सवाल यह है कि 15 साल से मप्र की सत्ता पर काबिज भाजपा के पास क्या क्षेत्र में एक भी नेता ऐसा नहीं था जो राजेन्द्र दादू के समकक्ष होता। या फिर यह टिकट एक रणनीति के तहत दिया गया है ताकि गुटबाजी के समय एक विधायक अपनी जेब में बढ़ जाए। 

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