राकेश दुबे@प्रतिदिन। चाहे केंद्र हो या राज्य, पिछले कई साल से देश के आर्थिक नियोजन के पीछे काम करने वाला विचार यही रहा है कि दुनिया भर के निवेशक, बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत में पैसा लगाएं, यहां अपनी उत्पादन इकाइयां खोलें, तो इससे एक तो लोगों को रोजगार मिलेगा और देश की खुशहाली का रास्ता भी तैयार होगा। कुछ हद तक ऐसा हुआ भी है, लेकिन देश में जितनी बड़ी बेरोजगार सेना है, जितनी देश के नौजवानों की संख्या है और जितना बड़ा इस देश का कुलजमा बाजार है, उसे देखते हुए यह बहुत ज्यादा नहीं है। अगर हम पड़ोसी चीन से तुलना करें, तो भारत विदेशी निवेशकों और कंपनियों को आकर्षित करने में बहुत पीछे है। यहां तक कि दुनिया के बहुत छोटे देश भी इस कतार में हमसे बहुत आगे हैं। ऐसा क्यों होता है कि किसी एक देश में निवेशक खिंचे चले आते हैं और एक के बाद एक उत्पादन इकाइयां लग जाती हैं, लेकिन कुछ दूसरे देश सिर्फ ताकते रह जाते हैं?
निवेशक यह देखते हैं कि किस देश में कारोबार करने का माहौल कितना अच्छा है? जिस देश में जितना अच्छा माहौल होगा, उस देश में वे कारोबार करने को उतनी ही जल्दी तैयार हो जाएंगे। किस देश में कारोबार का माहौल कितना अच्छा है, इसे जानने के लिए विश्व बैंक ने एक सूचकांक तैयार किया है, जिसे ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ यानी कारोबार में आसानी सूचकांक कहते हैं। साल २००३ से शुरू हुए इस सालाना सूचकांक में भारत इस समय १३० वें स्थान पर है। यानी अगर कोई निवेशक सिर्फ कारोबार में आसानी के लिहाज से सोचे, तो भारत में निवेश की बात सोचने से पहले वह १२९ देशों के नाम पर विचार कर चुका होगा।
कारोबार में आसानी का यह सूचकांक सिर्फ अर्थव्यवस्था या आर्थिक नीतियों का मामला नहीं है, यह दरअसल हमारी नौकरशाही और हमारी राजनीति की कहानी कहता है। इन्हीं दोनों की वजह से देश में न सिर्फ कारोबार करना कठिन है, बल्कि आम नागरिक जीवन भी बहुत कठिन है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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