
हमारे यहां परेशानी इसी बात को लेकर है कि इनका इस्तेमाल जरूरत से कुछ ज्यादा और काफी बेतरतीब ढंग से हो रहा है। अभी तक स्पीड ब्रेकर के निर्माण का काम स्थानीय निकायों या लोक निर्माण विभाग के हवाले होता था, लेकिन जब से प्लास्टिक के बने सस्ते स्पीड ब्रेकर बाजार में उपलब्ध हुए हैं, लोग अपने घर के बाहर गली तक में इसे लगा लेते हैं। नतीजा यह है कि जो स्पीड ब्रेकर दुर्घटना रोकने के लिए बने थे, वे दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में २२ प्रतिशत दुर्घटनाएं स्पीड ब्रेकर के कारण हुई हैं। एक साल में ऐसी कुल ११०८४ दुर्घटनाओं में ३४०९ लोग हताहत हुए हैं। अकेले राजधानी दिल्ली में ऐसी ४१ दुर्घटनाओं में २७ लोग घायल हुए, जबकि छह को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। यह भी पाया गया है कि बहुत सी दुर्घटनाएं सिर्फ इसलिए हुईं, क्योंकि स्पीड बे्रकर बनाने में उन मानकों का पालन नहीं हुआ, जिन्हें भारतीय रोड कांग्रेस ने स्पीड ब्रेकर बनाने के लिए तय कर रखा है।
जैसे कई जगह स्पीड ब्रेकर को तिरछी काली व पीली पट्टियों से रंगा नहीं गया और स्पीड बे्रकर से पहले सड़कों पर स्पष्ट चेतावनी के संकेत भी नहीं लगाए गए। अब दिल्ली उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि स्पीड ब्रेकर से कम से कम पांच सौ मीटर पहले उसकी चेतावनी के संकेत लगाए जाएं, साथ ही गैर-कानूनी रूप से बनाए गए स्पीड ब्रेकर हटाए जाएं। जबकि ऐसी भी सड़कें और गलियां हैं, जिनकी पूरी लंबाई 500 मीटर भी नहीं है और उन पर चार जगह स्पीड ब्रेकर बने हैं। अदालत का आदेश आ जाने का अर्थ यह नहीं है कि लोगों को तुरंत ही इस समस्या से मुक्ति मिल जाएगी। दो महीने पहले केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों से आग्रह किया था कि वे राष्ट्रीय राजमार्गों पर बने स्पीड बे्रकर को हटाएं, लेकिन अभी तक ऐसे ज्यादातर स्पीड ब्रेकर बने हुए हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश कोई नई बात नहीं कह रहा है, वह सिर्फ इतना ही कह रहा है कि मानकों का पालन किया जाए और जो गैर-कानूनी हैं, उन्हें हटाया जाए। दुर्भाग्य यह है कि अपने देश में ऐसी बात के लिए भी न्यायालय को अपना समय बर्बाद करना पड़ता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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