
दरअसल, एक मां-बेटी ने अपने पुत्र, उसकी बीवी तथा उनके बेटा-बेटी के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करवाई। मगर, मुंबई हाईकोर्ट ने धारा 2(क्यू) को देखते हुए सभी महिलाओं को शिकायत से बाहर कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि इस कानून में वयस्क पुरूष के खिलाफ ही शिकायत की जा सकती है। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
इस पर जस्टिस कुरयिन जोसेफ और जस्टिस आरएफ नारीमन की पीठ ने कहा कि ये शब्द एक समान स्थिति वाले लोगों में भेदभाव कर रहे थे, जो घरेलू हिंसा कानून के उद्देश्यों के विपरीत हैं। कोर्ट ने कहा कि ‘वयस्क पुरूष’ शब्द महिलाओं को हर प्रकार की घरेलू हिंसा से बचाने के सामाजिक कल्याण के कानून को सीमित कर रहा था।
पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला भी निरस्त कर दिया, जिसमें धारा 2(q) को हल्का किया गया था। इसमें कहा गया था कि इस धारा को अलग से न पढ़ा जाए बल्कि, कानून की योजना के अंदर ही पढ़ा जाए।
कोर्ट ने कहा कि कानून की धारा 2(क्यू) के प्रावधान व्यर्थ होने के कारण कानून से हटाए जाते हैं। पीठ ने कहा कि यदि प्रतिवादी को सिर्फ वयस्क पुरूष के रूप में ही पढ़ा जाएगा, तो यह साफ है कि वे महिला संबंधी, जिन्होंने वादी को घर से निकाला है, वे इसके दायरे में नहीं आएंगीं।
यदि ऐसा होगा तो कानून के उद्देश्य को पुरुषों द्वारा आसानी से समाप्त किया जा सकता है क्योंकि वे सामने नहीं आएंगे और महिलाओं को आगे कर देंगे। ऐसे में घर की अन्य महिला शिकायतकर्ता पीड़िता को घर से निकाल देगी।