भोपाल। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाका बदहाली और पिछड़ेपन के लिए जाना जाता है तो दूसरी तरफ अपराध के लिए भी कुख्यात है। बुंदेलखंड के छतरपुर और टीकमगढ़ इलाके में तो अपराध का कुछ ज्यादा ही बोलबाला है। हालात ये है कि यहां पर किशोर और युवा अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़कर कम उम्र में ही अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं और अपना भविष्य बर्बाद कर लेते हैं।
अब एक युवा आईपीएस अधिकारी की पहल से इस इलाके के युवाओं में बदलाव ला रही है और युवा अपराध से नाता तोडकर अपनी जिंदगी संवारने में जुट गए हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के जतारा कस्बे की जहां एक आईपीएस अफसर की पोस्टिंग ने मानो माहौल बदल दिया है। अब युवा लड़ाई झगड़े छोड़कर अपना भविष्य बनाने में लगे हैं और युवा आईपीएस इन युवाओं को उनका कैरियर संवारने में मदद कर रहे हैं।
2013 बैच के आईपीएस अफसर हितेश चौधरी की पहली पोस्टिंग जतारा में एसडीओपी के रूप में हुई थी, लेकिन ये युवा आईपीएस अफसर कानून व्यवस्था संभालने और अपराधों पर लगाम लगाने के साथ ही इलाके के युवाओं को पुलिस और आर्मी में भर्ती होने के लिए ट्रेनिंग दे रहा है।
आईपीएस हितेश चौधरी बताते हैं कि उनकी पोस्टिंग जब एसडीओपी जतारा के रूप में हुई तो उन्होंने इस इलाके में एक अलग बात देखी कि इलाके के किशोर और युवा अपराध की दुनिया से पढ़ने लिखने और कैरियर बनाने की उम्र में ही नाता जोड़ लेते हैं। दरअसल, उनके दफ्तर में आए दिन किशोर और युवा वर्ग के लोग शिकायती आवेदन लेकर आते थे और ज्यादातर मारपीट के मामले होते थे। कई मामले तो इतने गंभीर होते थे कि उनकी उम्र देखकर भरोसा नहीं होता था।
युवा आईपीएस हितेश चौधरी ने जब छानबीन की तो पता चला कि इलाके में अपराध का बोलबाला है, लेकिन अच्छी पढ़ाई और मार्गदर्शन की कमी के कारण किशोर और युवा तेजी से अपराध के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। हांलाकि युवाओं के मन में सरकारी नौकरी की ललक है और ज्यादातर युवा सेना और पुलिस में भर्ती होना चाहते हैं, लेकिन उन्हें उचित मार्गदर्शन नहीं मिलता और वो छोटी मोटी लड़ाई के चलते अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं। उसके बाद इन्होंने युवाओं को फिजीकल ट्रेनिंग के साथ-साथ काम्पटीशन एक्जाम पास होने के लिए प्रशिक्षण देने लगें।
आईपीएस हितेश चौधरी ने अपनी ड्यूटी के साथ ही जतारा इलाके के युवाओं को आर्मी और पुलिस में भर्ती होने के लिए ट्रेनिंग देना शुरू किया। अपनी ड्यूटी के अलावा हितेश चौधरी समय निकालकर युवाओं को फ्री में कोचिंग देते हैं। हांलाकि उनकी व्यवस्तता ज्यादा होती है, लेकिन वो स्थानीय कॉलेज के कुछ प्रोफेसर और पढ़े लिखे युवाओं की मदद से नि:शुल्क कोचिंग पढ़ाते हैं।
अब वही बच्चे सुबह से जहां खेल ग्राउंड पर फिजीकल ट्रेनिंग के तौर पर आईपीएस हितेश चौधरी के मार्गदर्शन में पसीना बहाते नजर आते हैं तो शाम के वक्त कोचिंग में लिखित परीक्षा और इंटरव्यू की तैयारी करते नजर आते हैं।
आईपीएस की इस शुरूआत का ऐसा असर देखने को मिला कि कोचिंग के पहले ही दिन 40 बच्चों ने आईपीएस हितेश चौधरी के पास पहुंचकर ट्रेनिंग में शामिल होने की रूचि दिखाई। अब ट्रेनिंग लेने वाले बच्चों का आंकडा 100 के पार पहुंच गया है और युवा नौकरी पाने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं।
रोजाना सुबह पांच बजे ट्रेनिंग शुरू होती है और युवाओं को लंबी कूंद, पीटी, दौड़ने और गोला फेंकने का अभ्यास कराया जाता है। चार घंटे के कड़े अभ्यास में कुछ ही दिनों में युवा इतने परफेक्ट हो गए हैं कि आर्मी और पुलिस की शारीरिक परीक्षा के हर पैमाने पर खरे उतरते हैं।
इसके अलावा शाम को आईपीएस हितेश चौधरी इन बच्चों को लिखित परीक्षा और इंटरव्यू की तैयारी करवाते हैं। आईपीएस हितेश चौधरी की क्लास का नजारा देखने लायक होता है। इस क्लास में विशेषकर पुलिस आरक्षक और सब इंस्पेक्टर पद पर भर्ती होना चाह रहे युवाओं की भीड़ होती है।
वे बताते हैं कि यहां के युवाओं में प्रतिभा थी, लेकिन मार्गदर्शन की कमी के कारण युवा भटक रहे थे और अपराध की दुनिया से नाता जोड़ रहे थे। उन्होंने कहा कि इतने कम दिनों की ट्रेनिंग में कुछ ऐसे युवा तैयार हुए हैं जो आज अगर सब इंस्पेक्टर और आरक्षक की परीक्षा दें तो उनका चयन निश्चित है।
आईपीएस हितेश चौधरी की इस पहल का सकारात्मक असर पूरे इलाके में देखने को मिल रहा है और जिले के अन्य युवा भी उनसे ट्रेनिंग लेने के लिए जतारा पहुंच रहे हैं। स्थानीय लोग एसडीओपी साहेब को डर और दहशत की नजर से नहीं बल्कि सम्मान की नजर से देखते हैं। कहते हैं कि आईपीएस साहब ने मानो हमारे इलाके का माहौल ही बदल दिया है। जिस इलाके में बच्चों के गलत कामों के चलते माता-पिता थाना, कचहरी और जेल के चक्कर काटते फिरते थे, अब माता-पिता बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करते नजर आते हैं और आईपीएस हितेश चौधरी जैसा बनने की प्रेऱणा देते हैं।