जबलपुर। उच्च न्यायालय के एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेन्द्र मेनन व जस्टिस अंजुली पालो की खण्डपीठ ने वृद्ध माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007 की धारा 16 एक की संवैधानिकता को चुनौती देनी वाली याचिका पर निर्णय दिया। न्यायालय ने सक्षम प्राधिकरण के विरुद्ध मात्र एक पक्ष वृद्ध माता-पिता अथवा वरिष्ठ नागरिक को ही अपील का अधिकार प्रदत्त करने और दूसरे पक्ष यानि संतान को इससे वंचित करने को असंवैधानिक बताया।
धारा 16 एक की संवैधानिकता को अधिवक्ता आदित्य नारायण गुप्ता ने चुनौती दी थी। दरअसल सक्षम प्राधिकरण जबलपुर ने एक मामले में बच्चे को अपने माता-पिता को प्रतिमाह भरण पोषण आदि की राशि देने का आदेश दिया था लेकिन धारा 16 एक बच्चे का इस आदेश के विरुद्ध अपील दायर करने से वर्जित करती थी। न्यायालय ने पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय की खण्डपीठ द्वारा परमजीत कुमार सरोया विरुद्ध भारत संघ में पारित निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि यदि दूसरे पीड़ित पक्ष को भी अपील करने का अधिकार (जो वृद्ध माता-पिता अथवा वरिष्ठ नागरिक नहीं है) को धारा 16 एक की व्याख्या में सम्मिलित पढ़ा जाये तो फिर यह धारा असंवैधानिक घोषित होने से बच जाएगी।
न्यायालय ने कहा कि असंवैधानिकता पर निर्णय लेते समय यह प्रयास करना चाहिए कि ऐसी स्थिति में कानून की धारा को असंवैधानिक घोषित होने से बचाकर धारा 16 एक में ही दूसरे वंचित पीड़ित पक्ष को भी अपील करने का अधिकार प्रदान कर दिया जाए। इस व्याख्या के उपरांत खण्डपीठ ने याचिकाकर्ता को 4 सप्ताह की अवधि में अपीलेट फोरम के समक्ष अपील दायर करने की स्वतंत्रता प्रदान की। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्शमुनि त्रिवेदी व अधिवक्ता राजेन्द्र गुप्ता ने पैरवी की।
न्यायालय ने यह कहा
यदि दो पक्षों की सुनवाई के लिए कानून के द्वारा एक प्राधिकरण का गठन किया गया है तो अपील का अधिकार मात्र एक पीड़ित पक्ष को ही दिया जाना अधिनियम की धारा 16 एक को असंवैधानिक बनाता है।