राकेश दुबे@प्रतिदिन। शहरों के विपरीत कई ऐसे कस्बे भी हैं जहां लोगों के सामने भुगतान के ये वैकल्पिक तरीके पहुंच चुके हों और उसे लेकर समस्या बहुत ज्यादा आड़े भी नही आती । लेकिन गांवों में ऐसा नहीं है। हमारे गांव अब भी भुगतान के आधुनिक विकल्पों से तो अनजान हैं ही, वे बैंकिंग व्यवस्था से भी बहुत दूर हैं। ज्यादातर गांवों में एटीएम नहीं हैं और बैंक शाखाएं भी बहुत कम में ही हैं। और जहां ग्रामीण व सहकारी बैंक हैं, वहां अभी तक पुराने नोट बदलने की व्यवस्था नहीं पहुंची है। वहां अगर किसी के पास 500 या 1000 रुपये के पुराने नोट हैं, तो उन्हें बदलवाने के लिए हो सकता है कि कई मील लंबा सफर तय करना पड़े। फिर दूसरी मुश्किलें तो हैं ही। और यह समस्या तब आई है, जब खेतों में रबी की फसल बोई जानी है। किसानों को इसके लिए बीज और रासायनिक खाद खरीदनी है। इससे चूके, तो पूरा सीजन ही हाथ से निकल जाएगा। इसे लेकर चिंता के स्वर पिछले दो सप्ताह से पूरे देश से ही सुनाई दे रहे थे।
ऐसे में, सरकार का यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण है कि किसान अब पुराने नोटों से अपने लिए बीज खरीद सकेंगे। जाहिर है कि सरकार को भी यह समझ में आ गया है कि यह मामला किसानों की निजी समस्या का नहीं, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा से जुड़ा है। हालांकि किसानों को मिली यह राहत महत्वपूर्ण भले ही है, लेकिन बहुत बड़ी नहीं है। सरकार की घोषणा के अनुसार किसानों को यह छूट केंद्र सरकार के विक्रय केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालयों से बीज खरीदने पर ही मिल सकेगी। इसका अर्थ है कि यह सुविधा भी देश में सभी जगहों के सभी किसानों तक नहीं पहुंच पाएगी। रबी की बुआई का समय निकला जा रहा है, इसलिए इस राहत को सभी किसानों तक पहुंचाया जाना जरूरी है। उम्मीद है कि यह काम जल्द ही होगा, वित्त मंत्री ने यह कहा भी है कि अब ग्रामीण क्षेत्रों और किसानों पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाएगा। बीजों की खरीद पर किए गए इस फैसले को उर्वरकों की खरीद तक ले जाना भी जरूरी है।
किसानों की यह समस्या हमारी कृषि और ग्रामीण नीतियों व उनके कार्यान्वयन के बारे में भी बहुत कुछ कहती है। आठ साल पहले देश में एक किसान क्रेडिट कार्ड योजना शुरू की गई थी। उसका मकसद था, किसानों को आधुनिक बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ना और फसल की बुआई के समय उन्हें आसान शर्तों पर उधार उपलब्ध कराना। रिजर्व बैंक और नाबार्ड की मदद से शुरू की गई यह योजना अगर ठीक से लागू हो गई होती, तो शायद किसानों के सामने नगदी का यह संकट इस तरह से नहीं आता। महानगरों के लोगों की तरह ही किसान भी प्लास्टिक मनी से बीज और उर्वरक खरीद रहे होते।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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