राकेश दुबे@प्रतिदिन। नोट बंदी से उपजे संकट से नेपाल भी त्रस्त हो गया है, उसने इस स्थिति से निबटने के लिए भारत से मदद मांगी है। हजार-पांच सौ के नोटों का चलन अचानक बंद होने से भारत के साथ नेपाल में भी स्वाभाविक रूप से दिक्कतें आनी थीं, जो सामने आईं भी। और भारतीय जनता ने बड़े उद्देश्य की खातिर लिए गए एक बड़े फैसले का कष्ट सहकर भी स्वागत किया। यह लंबी-लंबी लाइनों में घंटों खड़े होने के बावजूद दिखे उसके धैर्य ने प्रमाणित किया। यह उस सच से भी प्रमाणित हुआ कि वह रात-रात जगी, सुबह-सुबह लाइन में खड़ी दिखी, लेकिन कुछ अप्रिय नहीं होने दिया। लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि इतने बड़े फैसले को अमली जामा पहनाने के लिए जैसी तैयारी होनी चाहिए थी, वह नहीं थी। नेपाल तो वैसे भी प्राकृतिक मार झेल रहा है। उसकी मदद की दरकार जायज है।
पर नेपाल की मदद के पूर्व भारत को सोचना होगा और नागरिको को धन्यवाद देना होगा की बावजूद इसके कि बैंकों की व्यवस्थाएं भी इसके लिए तैयार नहीं थीं। जो कमियां रही, उनमे जैसे बिल्कुल निचले स्तर तक जाने वाले असर के लिए जैसे खुले विमर्श की जरूरत थी, वह भी नहीं था। गोपनीयता बरतने के लिए यह जरूरी रहा होगा, पर बड़े फैसले लेते वक्त बरती जाने वाली सतर्कताएं यहां नदारद थीं। गरीब और मध्यवर्गीय जनता खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की दुश्वारियों को ध्यान में नहीं रखा गया। नतीजा पिछले पांच दिनों की अफरा-तफरी के बीच हर बैंक शाखा के आगे न खत्म होने वाली लाइनें दिखीं। अपनी सारी व्यवस्थाओं को आधुनिक कंप्यूटरी तकनीक में बदल चुके बैंकों का तंत्र भी इस अप्रत्याशित काम को संभालने के लिए तैयार नहीं था। वहां वैसा इंफ्रास्ट्रक्चर व मैनपावर ही नहीं बची, जो इस बड़े टास्क को हाथोंहाथ संभाल पाती, पर यह भी सच है कि अपनी सीमाओं के बावजूद बैंक कर्मियों ने घड़ी की सुइयां न देख छुट्टियों में भी काम को अंजाम दिया।
सच है कि काले धन की दशकों पुरानी समस्या और भ्रष्टाचार से कड़े व साहसिक कदम से ही निपटा जा सकता है, लेकिन इसके लिए उतनी ही बड़ी तैयारी की भी जरूरत होती है। चलन बंदी की घोषणा के छह दिन बाद भी स्थिति का सामान्य न होते दिखना चिंता का विषय है। इस चिंता को यह कहकर भी दरकिनार नहीं किया जा सकता कि लोग बार-बार एटीएम पर आकर पैसे निकाल रहे होंगे और घरों में जमा कर रहे होंगे, क्योंकि यह भी उतना ही बड़ा सच है कि किसी भी एटीएम या बैंक में इस वक्त घंटों लाइन लगाने के बाद ही निकासी संभव हो पा रही है|
खैर, सरकार ने देर से ही सही इन सारी दुश्वारियों को महसूस किया और समझा। यही कारण था कि अब कुछ ऐसे इंतजामों की घोषणा हुई है, जिसके बाद माना जाना चाहिए कि हालात कुछ सुधरेंगे|सुदूरवर्ती इलाकों का संकट महसूस कर वहां हेलीकॉप्टर से राशि भेजना तय हुआ है। यह भी सुनिश्चित किया है कि शीघ्र एटीएम से सिर्फ 100 नहीं, बल्कि 2,000 के नोट भी निकलेंगे, इसीलिए एटीएम से निकासी की सीमा भी ढाई हजार कर दी है। बैंकों से निकासी की सीमा बढ़ाना भी इसी कड़ी में है। बुजुर्गों, दिव्यांगों व पेंशनर्स का खास ख्याल रखा गया है। इन सारी व्यवस्थाओं पर नजर रखने के लिए रिजर्व बैंक ने टास्क फोर्स बना दी है। यानी आश्वस्त हुआ जा सकता है कि आज से काफी कुछ पटरी पर लौटना शुरू हो जाएगा। अब यदि पडौसी नेपाल की मदद की जाये, लेकिन यह ध्यान में रख कर की जाली भारतीय नोट के व्यापर में उसकी भी भूमिका रही है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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